देश में निचली अदालतों से लेकर सर्वोच्च न्यायालय तक यदि लंबित मामलों की संख्या देखी जाए तो पता चलता है कि लाखों केस लंबित हैं और हजारों तो ऐसे हैं, जो सालों से ही नहीं, दशकों से लंबित चले आ रहे हैं। मध्य प्रदेश की बात करें तो हाईकोर्ट में लगभग 4 लाख 62 हजार मामले पेंडिंग हैं। लगातार बढ़ते मामलों के पीछे न्यायाधीशों की कमी का प्रभाव बताया जा रहा है। वर्तमान में हाईकोर्ट में न्यायाधीशों के कुल 53 स्वीकृत पदों में से केवल 33 जज ही कार्यरत हैं। 20 पद अभी भी खाली है। इस साल 2025 में चीफ जस्टिस के साथ 8 जस्टिस रिटायर हो रहे हैं।
पहले मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की बात करते हैं। आज की खबर के अनुसार मुख्य पीठ जबलपुर सहित तीनों पीठों में कुल 4 लाख 62,000 हजार से ज्यादा मामले पेंडिंग हैं। न्यायाधीशों की कमी के कारण एक जज पर औसतन 14 हजार मामलों का बोझ है। लंबित मामलों की बढ़ती संख्या का एक मुख्य कारण न्यायाधीशों के रिक्त पद हैं। हालांकि, नए साल में नए न्यायाधीशों की नियुक्ति की उम्मीद जताई जा रही है। सूत्रों के मुताबिक, हाई कोर्ट कॉलेजियम ने वकीलों के कुछ नाम सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को भेजे हैं। सुप्रीम कोर्ट की स्वीकृति के बाद ये नाम राष्ट्रपति को भेजे जाएंगे।
कुछ समय पहले मध्य प्रदेश हाई कोर्ट बार एसोसिएशन की कार्यकारिणी ने केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल से मुलाकात कर न्यायाधीशों के रिक्त पदों को भरने की मांग की थी। वहीं, पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा भेजे गए कुछ नाम अब भी कानून विभाग के पास लंबित हैं। जिस मुद्दे को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पर उठाया जा रहा है, उससे संबंधित मामले भी जल्दी नहीं निपट पा रहे हैं। यह मामला है नाबालिग बच्चियों के साथ दुष्कर्म का।
दुष्कर्म पीडि़त नाबालिग बेटियों को प्रदेश में न्याय की सबसे बड़ी संस्था से भी न्याय के लिए सालों इंतजार करना पड़ रहा है। मप्र में पिछले 24 साल में पॉक्सो के 4,928 मामले हाई कोर्ट में लंबित हैं। इन मामलों में कुल 5,243 आरोपी हैं। इनमें से 2,650 जेल में बंद हैं, जबकि 2,593 जमानत पर आजाद हैं। यह कुल मामलों का 49.46 प्रतिशत है, जो बहुत अधिक है।
कुछ दिन पहले आए आंकड़ों को देखें तो पता चलता है कि देश के सर्वोच्च न्यायालय में लंबित मामलों की संख्या रिकॉर्ड 83000 हजार के करीब पहुंच गई है। शीर्ष अदालत में नए मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है, जबकि पिछले दो वर्षों में लंबित मामलों की संख्या में लगभग 4,000 की वृद्धि हुई है। देश के सभी उच्च न्यायालयों में जहां 2019 में 46.8 लाख मुकदमे लंबित थे, वहीं 2023 तक यह संख्या बढक़र 62 लाख हो गई थी. इसका मतलब नए मामलों में 33 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई,15 लाख नए मामले जुड़ गए।
देश की निचली अदालतों में हालत तो और भी खराब है। 2019 में निचली अदालतों में कुल लंबित मामले 3.2 करोड़ थे जो 2023 तक बढक़र 4.4 करोड़ हो गई थी। सबसे ज्यादा केस उत्तर प्रदेश 1.09 करोड़ में पेंडिंग हैं, इसके बाद दूसरा स्थान महाराष्ट्र का है, जहां 49.34 लाख केस पेंडिंग हैं। आंकड़े बताते हैं कि निचली अदालतों में पेंडिंग 70 हजार 587 क्रिमिनल केस 30 साल से ज्यादा पुराने हैं। वहीं, 36 हजार 223 सिविल केस 30 साल से ज्यादा वक्त से पेंडिंग हैं। पिछले 10 साल में सिविल और क्रिमिनल पेंडिंग केस की संख्या जिला स्तर पर 34 लाख से ज्यादा और हाई कोर्ट में 12.5 लाख से ज्यादा है। सुप्रीम कोर्ट में कुल 11 हजार मामले पेंडिंग हैं।
लंबित मामलों प्रभावित सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर विगत 20 अगस्त को सुनवाई की थी। इसमें जस्टिस एस. रवींद्र भट और जस्टिस अरविंद कुमार की बेंच ने कहा था कि एक डेटा के मुताबिक, देश में 6 प्रतिशत आबादी मुकदमेबाजी से प्रभावित है। यह चिंताजनक स्थिति है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 20 अक्टूबर को पांच साल से ज्यादा समय से पड़े पेंडिंग केस को निपटाने के लिए चीफ जस्टिस को कमेटी बनाने के लिए कहा था, जो लगातार इन पर निगरानी कर सके। कोर्ट का कहना है कि न्याय की उम्मीद से लाखों लोग याचिका दायर करते हैं। सभी लोगों को इंसाफ मिले ये हमारी जिम्मेदारी है। न्याय में देरी से लोगों का अदालत से भरोसा कम होने लगता है।
जब स्वयं सर्वोच्च न्यायालय यह बात कर रहा है तो आम आदमी की स्थिति क्या होगी, यह समझा जा सकता है। मुकदमेबाजी के चलते लाखों परिवार तो रोजी-रोटी से ही मोहताज हो जाते हैं। लोगों की जमीन और घर बिक जाते हैं। लोग कर्जदार हो जाते हैं। कई परिवार तो कर्ज के चलते आत्महत्या तक कर लेते हैं। न्यायालयों की हालत ये है कि जो बंदा एक बार अदालत के चक्कर में उलझा, समझो उसकी जिंदगी उसी में बीत जाती है। कई बार तो दूसरी पीढ़ी भी मुकदमा लडऩे को मजबूर हो जाती है। जमीनों के मामले आज भी पीढिय़ों से चलते आ रहे हैं।
यह सही है कि न्यायाधीशों की कमी के चलते लंबित मामलों की संख्या बढ़ती जाती है, लेकिन केवल न्यायाधीशों की कमी को कहकर इतिश्री नहीं की जा सकती। कहीं न कहीं मामलों को जबरन लटकाने की मंशा भी वकीलों से न्यायाधीशों तक चली जाती है और यह विशुद्ध रूप से व्यवसाय का रूप ले लेती है। एक बड़ा प्रतिशत ऐसे मामलों का भी है, जिन्हें केवल पैसे के लिए लटकाया जाता है। यह दुखद स्थिति है। ऐसी स्थिति को टाला नहीं गया तो न्यायपालिकाओं के प्रति भरोसा बढऩे के बजाय और उठता चला जाएगा।
– संजय सक्सेना