Editorial: गिग वर्कर्स को न्यूनतम वेतन तो मिले…

असंगठित कामगारों की श्रेणी में अब गिग वर्कर भी शामिल हो गये हैं। भारत सरकार के बजट में गिग वर्कर को भी जगह मिल गई है। इस साल के बजट में गिग वर्कर्स के लिए ई-श्रम पोर्टल में रजिस्ट्रेशन, आईडी कार्ड और आयुष्मान भारत के तहत स्वास्थ्य बीमा का प्रावधान भी किया गया है, लेकिन इनके साथ ही संपूर्ण असंगठित कामगारों के लिए न्यूनतम वेतन या न्यूनतम मजदूरी की मंजिल दूर ही लगती है। हालांकि न्यूनतम मजदूरी की दरें कलेक्टर रेट के आधार पर तय कर दी जाती हैं, लेकिन हकीकत में उसका भुगतान कम ही होता है।
असल में ओला, उबर, जोमेटो, अमेजन, स्विगी, बिग बॉस्केट जैसी एग्रीगेटर कम्पनियों से जुड़े ड्राइवरों, डिलीवरी बॉय और अस्थायी कामगारों को गिग वर्कर कहा जाता है। बजट में इनके लिए कुछ प्रावधान किये गये आर दिल्ली चुनाव प्रचार के दौरान मोदी की गारंटी में यह भी कहा गया कि ऑटो, टैक्सी, ई-रिक्शा ड्राइवर और गिग वर्कर्स को 10 लाख रुपए का जीवन बीमा और 5 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा देने के लिए कल्याण बोर्ड बनाया जाएगा।
इस संबंध में कानून भी बनाये गये हैं। चार साल पहले शुरू हुए ई-श्रम पोर्टल में यूएएन नम्बर को आधार से जोड़ा जाएगा।। पिछले साल बजट भाषण में वित्त मंत्री ने कहा था कि ई-श्रम पोर्टल को मनरेगा, नेशनल कॅरियर सर्विस, स्किल इंडिया, प्रधानमंत्री आवास योजना, श्रमयोगी मानधन जैसे दूसरे पोर्टल्स से जोडक़र वन स्टॉप सेंटर बनाया जाएगा। इससे गिग वर्कर्स को सभी राज्यों में सभी योजनाओं का लाभ मिल सकता है। अभी इस पर बहुत काम बाकी है। संदर्भ देखें तो पता चलता है कि ई-श्रम पोर्टल में 30.48 करोड़ कामगारों का रजिस्ट्रेशन है, जिनमें लगभग पचास प्रतिशत से ज्यादा कृषि क्षेत्र में हैं। देश के लगभग 1 करोड़ से ज्यादा गिग वर्कर्स के रजिस्ट्रेशन के लिए श्रम मंत्रालय ने टेक कम्पनियों को पिछले साल तीन महीने का समय दिया था। वहां कुछ खास प्रगति नहीं हुई।
न्यूनतम वेतन की बात तो दूर, डिजिटल टूल्स और नेविगेशन टेक्नोलॉजी के इस्तेमाल से लगातार मॉनिटरिंग के कारण गिग वर्कर्स का शोषण भी बढ़ा है। एनएचआरसी सर्वे की बात करें तो मामला गंभीर है। इस सर्वे में सामने आया कि शोषण और अनियमित काम के चलते असंगठित क्षेत्र के दो-तिहाई कामगार बीमारी और अपमान झेलने को मजबूर हैं। काम के अनियमित घंटों और शोषण की वजह से गिग वर्कर्स में महिलाओं की भागीदारी बहुत कम है। ड्राइवर और डिलीवरी बॉय का जमकर शोषण करने के बावजूद कम्पनियां उन्हें न्यूनतम वेतन भी नही देना चाहती हैं।
प्रधानमंत्री ने अगस्त 2022 में श्रम मंत्रियों के सम्मेलन में गिग वर्कर्स को भी सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाने की बात कही थी। लेकिन पिछले पांच सालों से श्रम कानूनों को लागू नहीं किया जा पा रहा है। गिग वर्कर्स की सुरक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट में 2020 में याचिका दायर की गई थी, लेकिन केंद्र सरकार द्वारा 4 साल तक जवाब नहीं दिया गया। इस पर जजों ने नाराजगी जताई थी। न्यायाधीशों का भी कहना था कि अनुसार भारत अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन का संस्थापक देश है। इसलिए गिग वर्कर्स को एग्रीगेटर कम्पनी से न्यूनतम वेतन, दुर्घटना बीमा, ईएसआई, स्वास्थ्य और पीएफ जैसी कानूनी सुरक्षा मिलनी चाहिए।
जी-20 के भारत मंडपम में आयोजित सम्मेलन में गिग वर्कर्स की सुरक्षा के लिए बयान जारी हुआ था। कई राज्यों में इनके लिए पहल हो रही है, लेकिन कानूनों का पालन ठीक से नहीं हो पा रहा है।
केंद्र सरकार ने आठवें वेतन आयोग का गठन कर सरकारी कर्मचारियों को तो खुश कर दिया, लेकिन निजी क्षेत्रों में अभी और कानूनों के साथ ही उनका पालन भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है। इस मामले में राजनीतिक इच्छा शक्ति तो दिखाई दे रही है, परंतु क्रियान्वयन के स्तर पर कुछ उदासीनता का माहौल है, जिसे दूर करना आवश्यक है।