Editorial: BHOPAL गैस कांड के चालीस साल बाद…

भोपाल गैस त्रासदी चालीस साल पहले हुई थी। यूनियन कार्बाइड कारखाने से निकली गैस ने हजारों लोगों की जान तो तत्काल ले ली थी, लाखों लोगों को बीमार, विकलांग बना दिया था। पूरी दुनिया में हलचल मच गई थी, लेकिन उस कारखाने का जहरीला कचरा अब चालीस साल बाद हटाने की कार्यवाही शुरू हो रही है, यह बात और है कि इसका भी विरोध शुरू हो गया है।

अंततः यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री के गोदाम में रखा 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा 12 कंटेनर में एक साथ पीथमपुर ले जाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है। इसके लिए 250 किमी लंबा ग्रीन कॉरिडोर बनाया जा रहा है। कचरे को जंबू बैग में भरने का काम सोमवार को पूरा हो गया। देर रात इन बैग्स को कंटेनर मैं लोड करना भी शुरू कर दिया गया। इस प्रक्रिया में लगभग 24 घंटे लगने की संभावना है। अफसरों का कहना है कि जहरीले कचरे को कंटेनर में भरने के दौरान छोटी सी चूक बड़ी तबाही ला सकती है, इसलिए वे सभी गाइडलाइन फॉलो कर रहे हैं, जो जरूरी है।

1 कंटेनर में एवरेज 30 टन कचरा भरा जा रहा है। 200 से ज्यादा मजदूर कचरा भरने में जुटे हैं, लेकिन उनकी 8 घंटे की बजाय 30 मिनट की शिफ्ट लगाई गई है। हर मजदूर की जेब में ब्लड प्रेशर मॉनिटर है। हर मजदूर पीपीई किट और दस्ताने पहनकर कचरा भर रहा है। घबराहट होते ही तुरंत काम रोका जा रहा है। पूरी प्रक्रिया की वीडियो ग्राफी भी कराई जा रही है।

इधर, कचरा जलाने के विरोध में 10 से ज्यादा संगठनों ने 3 जनवरी को पीथमपुर बंद का आह्वान किया है। पीथमपुर क्षेत्र रक्षा मंच, पीथमपुर ट्रेड यूनियन संघर्ष समिति, मप्र किसान सभा सहित कई संगठनों का कहना है, भोपाल का कचरा अमेरिका भेजा जाए। वहीं पीथमपुर बचाओ समिति 2 जनवरी को दिल्ली के जंतर मंतर पर प्रदर्शन करने की तैयारी में है। इंदौर के महात्मा गांधी मेमोरियल हॉस्पिटल एल्युमिनी एसोसिएशन ने पीथमपुर में यूनियन कार्बाइड का 337 मीट्रिक टन जहरीला कचरा जलाने के खिलाफ हाईकोर्ट में याचिका दायर की है। एसोसिएशन के सदस्य डॉ. संजय लोंढे व अन्य सदस्यों द्वारा लगाई गई इस याचिका में बिना ट्रायल और रिसर्च के कचरा निपटान पर सवाल उठाए हैं। स्थानीय नागरिकों ने भी इसका विरोध किया है।

लेकिन कचरा तो हटाना ही है। चालीस साल बाद यह प्रक्रिया शुरू हो रही है, जबकि इन सालों में इस कचरे के कारण पूरे इलाके का भूमिगत जल भी जहरीला हो गया है। सालों से भोपाल के लाखों लोग जहरीला पानी पी रहे हैं और बीमार भी हो रहे हैं। अब जहरीला कचरा भरते हुए विशेष सावधानी बरती जा रही है। हवा में यूनियन कार्बाइड गैस फैलने के कारण 1984 में 5 हजार से अधिक मौतें हुई थी। इसीलिए यूका परिसर में 3 जगहों पर एयर क्वालिटी की मॉनिटरिंग के लिए उपकरण लगाए हैं। इनसे पीएम 10 व पीएम 2.5 के साथ नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाई ऑक्साइड आदि की जांच की जा रही है। कचरा जिस स्थान पर रखा है, उस इलाके की धूल भी कचरे के साथ जाएगी। यदि कहीं कचरा गिरा है तो उस जगह की मिट्टी को भी पीथमपुर ले जाया जाएगा। इस मिट्टी और धूल की भी टेस्टिंग होगी। जांचा जाएगा कि कहीं मिट्टी भी तो जहरीली नहीं हुई?

कटेनर को भेजने से पहले यहां वजन होगा और पीथमपुर में पहुंचने पर वहां भी वजन किया जाएगा। पीथमपुर में कचरे को रखने के लिए लकड़ी का प्लेटफॉर्म बनाया गया है। यह प्लेटफार्म जमीन से करीब 25 फीट ऊपर बना है। इस कचरे को कब जलाना है, यह फैसला सीपीसीबी के वैज्ञानिकों की टीम करेगी। वही उसे जलाने की पूरी प्रक्रिया तय करेगी। किस मौसम में, कितने तापमान पर और कितनी मात्रा में जलाया जाए, यह फैसला लेने से पहले सैंपल टेस्टिंग भी होगी।

रामकी एनवायरो में 90 किलोग्राम प्रति घंटे की स्पीड से कचरे को जलाने में 153 दिन यानी 5 महीने 1 दिन का समय लगेगा। 270 किलोग्राम प्रति घंटे की स्पीड से नष्ट करते हैं तो इसे खत्म करने में 51 दिन का वक्त लगेगा।

यह कचरा भी एक बड़ा मुद्दा बन गया था। पीथमपुर में कचरा नष्ट करने का निर्णय इसलिए लिया गया था, क्योंकि वहां का प्लॉट अधिक सक्षम और अधिक सुरक्षित बताया जा रहा है। लेकिन पीथमपुर से लेकर इंदौर तक और आसपास के वातावरण में इस कचरे के जलने से कुछ जहरीली गैसें पर्यावरण में फैलने की आशंका बढ़ गई है। लोग डरे हुए हैं कि कहीं भोपाल जैसा कांड इस इलाके में न हो जाए। यह सरकार का सर दर्द है, लेकिन भोपाल के लिए तो इस कचरे से मुक्ति आवश्यक ही थी। अब कचरा तो रवाना हो रहा है, जलाये जाने की भी तैयारी हो गई है, जलाना ही पड़ेगा।

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