Editorial: नकली दवाएं चलती रहेंगी?

देश में कितनी नकली और प्रतिबंधित दवाइयां चल रही हैं, इसका अंदाजा तो लगाना मुश्किल ही नहीं असंभव सा लगता है, लेकिन हाल ही में जिस तरह से नकली दवाओं को लेकर चेतावनी जारी की जा रही है और इनकी सूची सार्वजनिक की जा रही है, उससे चिंता का माहौल बन गया है। ऐसा लगता है, मानो हम हर दूसरी दवा नकली या प्रतिबंधित वाली खा रहे हैं।
बुखार, डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर, पेट में संक्रमण आदि स्वास्थ्य समस्याओं के लिए जिन दवाओं का हम सामान्य तौर पर इस्तेमाल करते हैं, असल में उनकी गुणवत्ता सही नहीं है। इतना ही नहीं, बहुत सी दवाएं तो नकली हैं, जिन्हें बड़ी कंपनियों के ब्रांड के नाम से बेचा जा रहा है। यह खुलासा सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने अपनी हालिया मासिक रिपोर्ट में किया है।
दरअसल सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने अपनी साइट पर एक सूची जारी की है जिसमें बताया गया है कि पैरासिटामोल, पैन डी और कैल्शियम सप्लीमेंट सहित 53 दवाएं क्वालिटी चेक में फेल हो गई हैं। जाहिर है इन दवाओं के उपयोग को लेकर सुरक्षा संबंधी चिंताएं पैदा हो गई हैं।
क्वालिटी चेक में फेल होने वाली दवाओं में विटामिन सी और डी3 टैबलेट, शेलकल, विटामिन बी कॉम्प्लेक्स, विटामिन सी सॉफ्टजेल, एंटी-एसिड पैन-डी, पैरासिटामोल टैबलेट (आईपी 500 मिलीग्राम), एंटी डायबिटीज दवा ग्लिमेपिराइड और हाई बीपी की दवा टेल्मिसर्टन शामिल हैं। यह दवाएं हेटेरो ड्रग्स, अल्केम लेबोरेटरीज, हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमिटेड (एचएएल), कर्नाटक एंटीबायोटिक्स एंड फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड, प्योर एंड क्योर हेल्थकेयर और मेग लाइफसाइंसेज सहित कई कंपनियों द्वारा बनाई जा रही थी।
हिंदुस्तान एंटीबायोटिक लिमिटेड यानि एचएएल तो सरकार द्वारा नियंत्रित पीएसयू के अंतर्गत आती है। इस कंपनी द्वारा बनाई जाने वाली दवा मेट्रोनिडाजोल भी क्वालिटी टेस्ट में फेल हो गई है। इस प्रसिद्ध दवा को पेट के संक्रमण के इलाज के लिए खाया जाता है।
सीडीएससीओ ने 53 दवाओं की गुणवत्ता जांच की थी। जांच में 48 दवाएं मानकों पर खरी नहीं उतरीं। बाकी 5 दवाओं को सूची से इसलिए हटाया गया क्योंकि इन दवाओं को बनाने वाली कंपनियों ने दावा किया था कि बाजार में उनके नाम से नकली दवाएं बेची जा रही हैं। कंपनियों ने कहा कि जांच में आईं ये दवाएं उनके द्वारा निर्मित नहीं की गई थीं।
सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के अनुसार, नकली दवाओं को पहचानना मुश्किल होता है, नकली दवा होने का पता लगाने का एकमात्र असली तरीका प्रयोगशाला में किए गए रासायनिक विश्लेषण के जरिए होता है। कभी-कभी नकली दवाएं साइज, शेप और कलर में कुछ अलग दिखती हैं, या इन्हें खराब क्वालिटी की पैकेजिंग में बेचा जाता है, लेकिन वे अक्सर असली जैसी ही दिखती हैं। इसलिए केवल लाइसेंस वाले फार्मेसियों से दवाएं खरीदें और उनका बिल मांगें। खुले बाजार से दवाएं न खरीदने से बचना ही चाहिए।
दवा लेते समय यह सुनिश्चित करना चाहिए क दवा अपनी मूल पैकेजिंग में है।
और पैकेजिंग को ध्यान से देखें। खराब गुणवत्ता का प्रिंटिंग या पैकेजिंग नकली उत्पाद का संकेत हो सकता है। यदि आप ऑनलाइन दवाएं खरीदते हैं, तो सुरक्षित रूप से खरीदने के तरीके जानने के लिए इंटरनेट पर दवा खरीदने के लिए बताए टिप्स फॉलो करें। दवाएं खरीदने के बाद अपने उन्हें अपने डॉक्टर को जरूर दिखाएं।
सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गनाइजेशन ने अपनी सूची जारी कर दी। यह उसकी साइट पर है। और सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन ने अपनी ओर से चेतावनी जारी कर दी। लेकिन हमारे देश में सबसे बड़ी समस्या यह है कि करोड़ों लोगों तक तो यह जानकारी पहुंच पाई होगी कि ये दवाएं नकली हैं। दूसरी बात यह कि करोड़ों लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें इससे कोई मतलब ही नहीं होता कि उन्हें कौन सी दवा दी जा रही है।
ऐसे लोगों की संख्या अधिक है, जो सामान्य बीमारियों के लिए डाक्टर के पास नहीं जाते। सीधे मेडिकल स्टोर से दवा खरीद लेते हैं और सामान्य तौर पर ठीक भी हो जाते हैं। उन्हें इससे कोई लेना देना नहीं होता कि कौन सी दवा दी है। दवा के रैपर का कई बार तो वो हिस्सा ही उनके पास नहीं होता, जिसमें दवा का नाम या फार्मूला लिखा होता है। मैन्युफेक्चरिंग की तारीख या दवा एक्सपायर होने की तारीख भी नहीं होती। ऐसे में कौन देखेगा कि वह कौन सी दवा खा रहा है। जब दवा का नाम नहीं देखते तो फार्मूला या असली-नकली की पहचान कैसे करेंगे? यह इस देश के अस्सी प्रतिशत से अधिक लोगों की सच्चाई है।
ऐसे में नकली दवाओं पर सख्ती से प्रतिबंध लगाने से लेकर दवाएं बाजार में बिकने से रोकना, मेडिकल स्टोर की जांच और अन्य मुद्दे केवल सरकारी तंत्र तक ही सिमट कर रह जाते हैं। कितने ही लोगों को दवा का रियेक्शन हो जाता है, मौत तक हो जाती है। अधिकांश मामलों में कुछ नहीं होता। करे कौन? जिसके पास डाक्टर को दिखाने के लिए फीस के पैसे नहीं होते, वह क्या अदालत में लड़ेगा और क्या मुआवजा लेगा? डाक्टरों और नर्सिंग होम केवल लूटने के लिए बैठे हैं, ऐसा लगता है। उनका पूरा माफिया जैसा बन गया है। ऐसे में सामान्य आदमी के लिए तो बीमार होकर ठीक होना या मरना, एक जैसा हो गया है। फिर भी, नकली दवाएं बाजार से बाहर होना चाहिए, कैसे हों, इसकी जिम्मेदारी या तो सरकारी तंत्र पर है, या कुछ ऐसे संगठनों पर, जो वास्तव में ऐसे मुद्दों पर लोगों में आज भी चेतना जगाते दिख जाते हैं।
– संजय सक्सेना

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