Editorial: डीजे का कहर…

धार्मिक उत्सव का अर्थ यह नहीं कि किसी की जान ही ले ली जाए। आजकल धार्मिक कार्यक्रमों में विशेषकर अक्सर तेज आवाज में डीजे बजाए जाते हैं। चल समारोहों में जितना तेज हो सकता है, डीजे बजाए जाते हैं और हाल यह होता है कि पास से गुजरते वक्त कंपन महसूस होता है। कई बार तो लगता है कि मकान की दीवारें हिलने लगी हैं। दिल की धडक़नें एकदम तेज हो जाती हैं।
क्या आपने कभी सोचा है की इससे आपकी जान भी जा सकती है? मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में कुछ ऐसा ही हुआ है. यहां 13 साल के मासूम बच्चे की जान डीजे के तेज आवाज की वजह से चली गई। हाल ही में दशहरा और नवरात्रि का पर्व गुजरा है। प्रतिमा विसर्जन के दौरान जुलूस में बड़े-बड़े वाहनों में डीजे बजते हुए नजर आए। लोग नाच रहे थे, झूम रहे थे। इसी भीड़ में एक 13 वर्षीय मासूम समर बिल्लौरे भी खड़ा था। साईं बाबा नगर का रहने वाला समर अपनी मां को कह कर गया था कि मां मैं जुलूस देख कर आता हूं। तेज आवाज के कारण समर डीजे के पास ही बेहोश हो गया।
परिवार वालों ने आवाज कम करने को कहा, लेकिन डीजे नहीं रुका. आनन-फानन में समर बिल्लौरे को नर्मदा अस्पताल ले जाया गया, लेकिन यहां डॉक्टर ने उसे मृत घोषित कर दिया। डीजे इतना जानलेवा साबित हो सकता है. किसी ने इसकी कल्पना भी नहीं की थी। समर की मां इंसाफ मांग रही है, लेकिन उसे इंसाफ कौन देगा? धार्मिक और चल समारोहों में कानफोड़ू लाउड स्पीकर और डीजे चलाने वाले लडऩे के लिए तैयार हो जाते हैं। वो डीजे वालों पर कार्रवाई चाहती है, पर करेगा कौन? यहां तो धर्म के नाम पर, भोंडा प्रदर्शन और दुकानदारी ज्यादा हो रही है। जो विरोध करे, वो धर्म विरोधी। कब किस पर हमला कर दिया जाए, या करवा दिया जाए, कोई नहीं कह सकता।
बता दें कि डीजे कितनी आवाज में बजना चाहिए, कितनी आवाज के बाद आपको बीमारी हो सकती है, इन सबको लेकर विश्व स्वास्थ्य संगठन ने गाइड लाइन जारी है। जारी गाइड लाइन के अनुसार, 65 डेसिबल के बाद नॉइस पॉल्यूशन होने लगता है। 75 डिसेबल के बाद हानिकारक साबित होता है. 120 डिसेबल के बाद आपको हार्ट अटैक, ब्रेन हैमरेज, बहरापन सहित अन्य जानलेवा बीमारियां भी हो सकती हैं। लेकिन इस गाइड लाइन को ही लोग हिंदू और भारत विरोधी करार दे देंगे।
मध्य प्रदेश ने 95 डिसेबल की लिमिट तय की है, यह भी बीस डिसेबल ज्यादा है। लेकिन सरकार का निर्णय है, कौन चुनौती दे सकता है। और जो सडक़ों पर निकलते हैं, उन्हें तो कोई टोक भी नहीं सकता। भोपाल सिविल सर्जन राकेश श्रीवास्तव का कहना है कि वो खुद भी जब सडक़ पर निकलते हैं तो डीजे की आवाज़ इतनी ज्यादा होती है कि उससे काफी परेशानी होती है. इससे कितना नुकसान है, वो भी सुनिए।
दुखद पहलू यह है कि पुलिस के डीजे की आवाज से मौत की घटना की कोई शिकायत नहीं आई है। न ही उस मासूम का पोस्टमार्टम हुआ है, जिससे पता चल सके कि उसकी मौत की वजह क्या रही? वहीं इस घटना के बाद भोपाल पुलिस ने 100 से ज्यादा डीजे मालिकों पर एफआईआर दर्ज की है। अब तक 30 से ज्यादा डीजे जब्त किए जा चुके हैं. आगे भी कार्रवाई जारी है।
लेकिन ये कार्रवाई पर्याप्त नहीं है। अभी दीवाली का पर्व आने वाला है। लोग अंधाधुंध पटाखे चलाएंगे। तेज आवाज वाले भी और धुंआ फेकने वाले भी। त्यौहार हम खुशियां व्यक्त करने के लिए मनाते हैं। लेकिन हमारे यहां तो दूसरों को कष्ट देना ही त्यौहार मनाने का मुख्य आधार बनता जा रहा है। प्रदर्शन, वो भी भोंडा। रात दो बजे तक चलेंगे पटाखे। रात भर भी। कोई मना करके तो देखे। कोई पुलिस नहीं सुनती, कोई प्रशासन नहीं सुनता। आपत्ति करने वाले का त्यौहार जरूर मन जाता है। कई लोग अस्पताल में भर्ती हो जाते हैं, लेकिन इससे किसी को क्या?
एक बच्चे की मौत इनके लिए मायने नहीं रखती होगी, लेकिन उस मां से पूछो। उस परिवार के लिए तो उसकी मौत मायने रखती है। त्यौहार मनाने का विरोध नहीं है। हमारी धार्मिक मान्यतायें, परंपराएं जारी रहना चाहिए। सनातन धर्म की यह विशेषता ही रही है कि वह उदार है। धर्म कभी किसी दूसरे को कष्ट पहुंचाने की बात नहीं करता। धर्म कभी किसी का अनादर करने की बात नहीं करता। धर्म कभी पर्यावरण को हानि पहुंचाने की बात नहीं करता। उलटे हमारा धर्म को प्रकृति की पूजा करता आया है। हम नदियों को भी मां मानते हैं। फिर क्यों हम धर्म के नाम पर उद्दंडता कर रहे हैं? सवाल तो उठेगा ही। सनातन धर्म पर न पहले कोई संकट था और न आज है और न ही भविष्य में होगा। हां, जो इस धर्म का झंडा लेकर चलते दिखाई देते हैं, वही इसके लिए प्रमुख संकट बन रहे हैं।
दशहरा बीत गया। दीवाली आ रही है। बीमारियों का हमला चरम पर है। कोविड ने हमारी इम्युनिटी पावर छीन ली है। दीवाली मनाएं, लेकिन किसी दूसरे को कष्ट न हो, इसका ध्यान अवश्य रखें। धर्म हमें प्रेम और भाईचारा सिखाता है, सही धार्मिक बनें। हर्ष और उल्लास से त्यौहार मनाएं, अब डीजे या पटाखों से किसी समर की मौत न हो, इसका ध्यान हमें रखना होगा।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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