Editorial
बुलडोजर और सुप्रीम कोर्ट

मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने $िफलहाल कोई निर्णय तो नहीं सुनाया है लेकिन एक महत्वपूर्ण टिप्पणी अवश्य की है कि कोई आरोपी भले ही दोषी हो तो भी उसका मकान नहीं गिराया जा सकता। संबंधित राजनीतिक दलों और उनकी सरकारों को नोटिस देकर कहा भी है कि वे अपने- अपने तर्क दें, ताकि इस बारे में एक गाइडलाइन जारी की जा सके।
जहां तक बुलडोजर कार्रवाई की बात है, तो कुछ समूह इसे किसी वर्ग विशेष से जोडक़र भी देख रहे हैं लेकिन ऐसा स्पष्ट तौर पर इसलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि दूसरे वर्ग के लोगों के घरों पर भी बुलडोजर चलाए गए हैं। बुलडोजर कार्रवाई कितनी सही है और कितनी गलत? $कानूनी तौर पर इसका कोई आधार भी है या नही, यह तो अब सुप्रीम कोर्ट ही तय करेगा, लेकिन कुछ पार्टियों या समूहों का यह तर्क है कि एक अपराध की दो सजा नहीं दी जा सकती।
दो सजा से यहाँ मतलब है एक तो उसके खिला$फ पुलिस और कोर्ट कानून के हिसाब से कार्रवाई करती है और दूसरी कोई सरकार मकान गिराकर सजा देती है। बहुत हद तक यह तर्क सही भी प्रतीत होता है। अगर कोर्ट कहे कि इस आरोपी का मकान अगर अवैध है तो उसे गिरा दिया जाए तब यह कार्रवाई सही कही जा सकती है। लेकिन सवाल तो यहां यह उठता है कि अवैध मकान तब ही क्यों पता चलता है, जब आरोपी ने कोई अपराध किया हो? और सवाल यह भी उठता है कि सरकारें खुद सजा देने लगेंगी, तो फिर कोर्ट क्या करेगा?
राज्य सरकारों का तर्क है कि उन्होंने $कानून को हाथ में लेकर किसी के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। बल्कि उन्हीं घरों- मकानों को गिराया गया है जो अवैध रूप से बने हुए थे। इन अवैध मकानों को भी नगरपालिका नियमों के तहत गिराया गया है। अब सवाल यह है कि इस तरह के अवैध मकान बनने क्यों दिए गए? कैसे बन गए? किस अ$फसर ने, कितनी घूस खाकर वो मकान बनने दिया था। फिर अचानक ही सरकार को यह कैसे सूझ जाता है कि यह मकान अवैध रूप से बना है?
कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हम पूरे भारत के लिए इस मामले को लेकर कुछ दिशा-निर्देश बनाने का प्रस्ताव करते हैं ताकि इसको लेकर जताई गई चिंताओं का ध्यान रखा जा सके। यह महत्वपूर्ण मामला है। हम उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा उठाए गए रुख की सराहना करते हैं। इसको लेकर सभी पक्षों के वकील सुझाव दे सकते हैं ताकि अदालत इसको लेकर एक दिशा-निर्देश तैयार कर सके जो भारत में हर जगह लागू हो पाए।
यहां यह देखना होगा कि बुलडोजर मामले को लेकर सरकारों और राजनीतिक दलों के क्या विचार आते हैं। वर्तमान में विपक्ष पूरी तरह से बुलडोजर संस्कृति के खिलाफ खड़ा है। उसका कहना है कि एक विशेष वर्ग को ही निशाना बनाया जा रहा है। साथ ही, यह भी कि अपराध किसी एक ने किया, सजा उसके पूरे परिवार को भी दी जा रही है, यह कहां तक उचित है? यदि मकान अवैध बना है, तो यह स्थानीय निकाय की जिम्मेदारी अधिक बनती है।
बात अवैध मकान की निकली है, तो भोपाल जैसे शहर में यदि ईमानदारी से जमीनों की सही जानकारी निकाली जाए, तो तमाम कालोनियां, जिनमें पाश कालोनी भी शामिल हैं, बड़े अस्पताल-मेडिकल कालेज और राजनेताओं से लेकर अफसरशाहों के मकान और फार्म हाउस भी अवैध निकलेंगे? क्या किसी सरकार में इतनी हिम्मत है, तो यह सर्वे कराए। भोपाल में तो तालाबों को लील गए लोग और डूब क्षेत्र से लेकर जंगल तक खा गए। वहां आलीशान भवन और कालोनियां तान दी गई हैं। कौई है, जो यहां बुलडोजर चलवा सकता है? और तो और एक प्रभावशाली नेता का ही अवैध भवन एक मुख्य मार्ग पर कानूनों का खुला मखौल उड़ा रहा है। है कोई जो इसे अवैध बोल भी पाए?
खैर..। फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय ने जो बात कही है, उस आधार पर यह तय हो गया है कि किसी के भी घर पर बुलडोजर चलाना सर्वथा अनुचित है। सरकार  अदालत का काम खुद नहीं कर सकती। कोर्ट को ही तय करना होगा कि कहां बुलडोजर चलाना है, कहां नहीं।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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