माध्यमिक शिक्षा मंडल मध्यप्रदेश यानि एमपी बोर्ड के दसवीं और बारहवीं कक्षाओं के परिणाम घोषित कर दिए गए हैं, जो पास हो गए या मैरिट में आ गए, उनके लिए भले ही परिणाम अच्छे रहे हों, परंतु ओवर आल रिजल्ट अच्छा नहीं माना जा रहा है। देखने में आ रहा है कि बोर्ड की पढ़ाई का स्तर भी नहीं बढ़ पा रहा है और सरकारी स्कूलों के हाल ज्यादा बेहाल हो रहे हैं। जबकि प्रदेश में माडल स्कूल के बाद सीएम राइज स्कूल भी खोल दिए गए हैं या पुराने स्कूलों का उन्नयन कर दिया गया है। लाखों-करोड़ों इन्हें सजाने-संवारने में खर्च कर दिए, करोड़ों इनके प्रचार में, नतीजा क्या मिला…?
पहले नतीजों पर नजर डालते हैं। 12वीं बोर्ड परीक्षा में इस साल 64.49 प्रतिशत स्टूडेंट पास हुए हैं। रीवा की अंशिका मिश्रा ने मैथ्स साइंस स्ट्रीम में 500 में से 493 और विदिशा की मुस्कान दांगी ने भी कॉमर्स में 493 नंबर हासिल कर ओवरऑल टॉप किया है। वहीं, शाजापुर के जयंत यादव आर्ट स्ट्रीम और सिवनी की सना अंजुम खान बायोलॉजी में टॉपर रहीं। 6 संकाय में कुल 132 स्टूडेंट्स ने स्टेट मेरिट लिस्ट में जगह बनाई हैं। इनमें सर्वाधिक 13 स्टूडेंट भोपाल के हैं, जबकि इंदौर से एक स्टूडेंट है। रेगुलर स्टूडेंट्स में 60.55 प्रतिशत लडक़े जबकि 68.43 प्रतिशत लड़कियां पास हुई हैं। हालांकि इस साल पिछले साल की तुलना में 9.23 प्रतिशत बच्चे ज्यादा पास हुए हैं। 2023 में 55.26 प्रतिशत स्टूडेंट्स पास हुए थे। लेकिन यह परिणाम भी बहुत बेहतर नहीं कहा जा सकता है।
हायर सेकंडरी में तुलना करके देखें तो पिछले 6 सालों के रिजल्ट में लड़कियों का परफॉर्मेंस लडक़ों से बेहतर रहा है। 2019 में जहां छात्राओं का प्रतिशत 73 से अधिक रहा तो वहीं छात्रों का प्रतिशत 68 से अधिक रहा। 2023 में छात्राओं का परफॉर्मेंस 58 प्रतिशत से अधिक रहा तो छात्रों का प्रतिशत कुल 52 ही रह गया। वहीं, 2024 में 68 प्रतिशत से ज्यादा छात्राएं पास हुई हैं जबकि 60.55 प्रतिशत छात्र ही सफल हो पाए।
और अब प्राइवेट बनाम सरकारी स्कलों की बात करते हैं। पिछले 6 सालों के दौरान 2024, 2023 और 2022 में प्राइवेट स्कूलों का रिजल्ट सरकारी स्कूलों से बेहतर रहा है। जबकि इसके पहले 2019 में जहां सरकारी स्कूलों का रिजल्ट 74.38 प्रतिशत था तो प्राइवेट स्कूलों का प्रतिशत 67.55 रहा। 2020 में सरकारी स्कूलों का रिजल्ट 71.43 प्रतिशत था जबकि प्राइवेट स्कूलों का प्रतिशत 64.93 रहा। 2021 में सरकारी और प्राइवेट स्कूलों का रिजल्ट एक जैसा 100 प्रतिशत आया था।
अब आते हैं दसवीं के परिणाम पर। 10वीं बोर्ड में इस साल 58.10 प्रतिशत स्टूडेंट्स पास हुए हैं, जबकि 41.9 प्रतिशत स्टूडेंट्स फेल हो गए। यह 6 साल में सबसे कम है। पिछले साल की तुलना में 5.19 प्रतिशत स्टूडेंट्स कम पास हुए। मेरिट में 82 स्टूडेंट्स हैं। इनमें 37 छात्र और 45 छात्राएं हैं। पिछले साल के मुकाबले इस साल कक्षा 10वीं का रिजल्ट 5.19 प्रतिशत (रेगुलर) कम रहा है। इस बार 58.10 प्रतिशत छात्र-छात्राएं पास हुए हैं, जबकि पिछले साल 63.29 प्रतिशत स्टूडेंट्स सफल हुए थे। दमोह का परफॉर्मेंस सबसे खराब रहा। यहां पर 41.39 प्रतिशत स्टूडेंट्स ही पास हुए हैं।
9 जिले ऐसे हैं, जहां 50 प्रतिशत छात्र-छात्राएं भी पास नहीं हुए। सबसे अच्छा परफॉर्मेंस नरसिंहपुर जिले का रहा। यहां पर 80.51 प्रतिशत छात्र-छात्राओं ने सफलता हासिल की है। ओवर ऑल बात करें तो लडक़ों के मुकाबले लड़कियां ज्यादा पास हुई है। 54.35 छात्र और 61.88 छात्राएं पास हुई हैं। 10वीं में पिछले 5 सालों में छात्राओं ने छात्रों से बेहतर परफॉर्म किया है। माध्यमिक शिक्षा मंडल बोर्ड के अनुसार साल 2019 में लडक़े जहां 59.15 प्रतिशत पास हुए तो लड़कियों की यही संख्या 61.32 रही। वहीं, हमेशा की तरह साल 2023 में छात्राओं का पासिंग प्रतिशत 66 से अधिक रहा। जबकि छात्र 2023 में 60 प्रतिशत से अधिक पास हुए। इस साल कुल रिजल्ट 63.29 रहा था। 2024 में 58.10 प्रतिशत स्टूडेंट्स पास हुए हैं। यानी पिछले साल की तुलना में इस साल रिजल्ट 5.19 प्रतिशत कम रहा।
कुल मिलाकर देखा जाए तो बोर्ड पैटर्न से लेकर स्कूलों तक की हालत बहुत बेहतर नहीं कही जा सकती। बोर्ड के प्राइवेट स्कूल भी सरकारी तर्ज पर ही चलते दिखते हैं। हाईस्कूल में जहां पढ़ाई और नजीते बेहतर होने चाहिए, वहां मामला गिरता चला जा रहा है। सरकार का ध्यान स्कूलों को कहीं सीएम राइज नाम देकर तो कहीं माडल और कहीं दूसरा नाम देकर करोड़ों फूंककर अपना प्रचार करने पर ज्यादा होता है। वहां पढ़ाई कैसी हो रही है, इस पर कोई फोकस नहीं होता। बातें तो बहुत की जाती हैं, लेकिन शिक्षा का स्तर सुधारने पर कितना ध्यान दिया जा रहा है, यह दसवीं का परिणाम बताता है। खैर, सत्ता में बैठे लोगों को अपने व्यक्तिगत प्रचार की, चुनाव जीतने की चिंता है और अफसरों को समय पर मिलने वाली तनख्वाह की। आम आदमी को पेट भरने की। और यह कहकर पल्ला झाडऩे की कि- हम क्या कर सकते हैं?
– संजय सक्सेना