Edirorial: अब चीन के कब्जों पर क्यों हैं चुप्पी…!
पुरानी सरकारों पर तो सत्तापक्ष के नेता लगातार आरोप लगाते रहते हैं कि चीन ने हमारी जमीन हड़प ली और हमने कुछ नहीं किया। अब फिर एक बार चीन की हरकत सामने आई है, लेकिन इस पर हमारी सरकार की चुप्पी न केवल दुखद है, अपितु आश्चर्यजनक भी है।
असल में भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल द्वारा जनवरी के पहले हफ्ते में जानकारी दी है कि चीन ने होटन प्रिफेक्चर नामक अपने इलाके में लदाख की काफी भारतीय जमीन ‘गैरकानूनी रूप से हड़पते’ हुए अपनी दो नई काउंटियां (हेकांग और हेआन) स्थापित कर दी हैं। काउंटियां यानी प्रशासनिक इकाइयां, जहां दफ्तर और भवन होते हैंं, पुल बनाए जाते हैं, लोग रहते हैं, काम करते हैं और जहां चीन की प्रभुसत्ता भी बसेगी। यानी अब चीन इस जमीन पर एक तरह से कब्जा कर चुका है और वह यहां से पीछे नहीं जा जाएगा।
विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने यह भी जानकारी दी कि चीन यारलुंग सांगपो नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा पनबिजली बांध 137 अरब डॉलर की लागत से बनाने जा रहा है। इस नदी से हम सब परिचित हैं। जब यह बहते हुए उतरकर अरुणाचल प्रदेश और असम में पहुंचती है तो इसका नाम ब्रह्मपुत्र हो जाता है। अगर यह बांध बन गया तो भारत के पर्यावरण के लिए भीषण खतरा स्थायी रूप से पैदा हो जाएगा। चीन इससे 60 गीगाबाइट बिजली पैदा करेगा। यानि इससे अभी तक के सबसे विशाल थ्री गोर्जिज डैम से भी ढाई गुना ज्यादा बिजली पैदा होगी।
भारत में चीन के होटन प्रिफेक्चर को खोटान के नाम से जाना जाता है। चीन ने इसमें अक्साई चिन का काफी इलाका हड़पकर जोड़ रखा है। वह ‘सलामी स्लाइसिंग’ के नाम से कुख्यात अपने हथकंडे के जरिए पचास के दशक से ही भारतीय जमीन धीरे-धीरे कब्जाता रहा है। विदेश मंत्रालय के अनुसार यह 38 हजार किमी है। समझा जाता है कि पिछले दस साल में भी उसने इसी हथकंडे से इस गैरकानूनी कब्जे में बहुत-सी जमीन जोड़ी है।
उसने भारत को आधिकारिक रूप से न काउंटियां बनाने की जानकारी दी, और न ही बांध बनाने की। विदेश मंत्रालय को इसका पता चीनी समाचार एजेंसी सिनहुआ में छपी खबर से मिला। जाहिर है कि हमारा मंत्रालय 3 जनवरी तक इस बेचैन कर देने वाले घटनाक्रम के फलितार्थों पर गहराई से गौर करता रहा होगा। इससे पता चलता है कि इस संबंध में भारत की दुविधाएं और मजबूरियां किस स्तर की हैं? चीन-भारत संबंधों का अध्ययन करने वाले कई सुरक्षा-विशेषज्ञ एक अरसे से इस समस्या पर चेतावनीमूलक विचार करते रहे हैं। लेकिन ये सवाल और तथ्य सार्वजनिक विमर्श का हिस्सा नहीं बन पाए।
आश्चर्य की बात यह है कि भारत इस मसले पर केवल आपत्ति दर्ज कराकर रह गया। क्या उसके पास दुनिया के किसी मंच पर कोई ऐसा विकल्प नहीं, जहां वह इस घोर विस्तारवादी कदम के खिलाफ चीन को कठघरे में खड़ा करके जवाबतलब कर सके? क्या भारत अंतरराष्ट्रीय मंच पर चीन का गिरेबान पकडऩे की हैसियत नहीं रखता? और, जिस तरह से हमारे सत्ताधारी नेता बयान देते हैं, चीन पर भारत का दबाव बनने की बात करते हैं, चीन के सामान का बहिष्कार करने की बात करते हैं, लेकिन उन्हीं की सरकार की नाक के नीचे एक बार फिर से चीन हमारी जमीन पर कब्जा कर चुका है और हम कुछ बोल भी नहीं रहे हैं।
असल में 2021 में गलवान घाटी की घटना के बाद भारतीय सेना ने इस इलाके में ‘प्ले सेफ’ रवैया अपना रखा है। इस चक्कर में धीरे-धीरे वह लदाख के 65 पैट्रोलिंग पाइंट्स में से 26 पाइंट्स खोने की स्थिति में पहुंच गई है। यह रवैया सेना तभी अपनाती है, जब उसे राजनीतिक नेतृत्व द्वारा ऐसी हिदायत दी जाती है। अन्यथा वह पहलकदमी ले कर अपने पैट्रोलिंग पाइंट्स दोबारा हस्तगत करने की कार्रवाई भी कर सकती है।
चीन बहुत पहले से इस तरह के पनबिजली बांध बनाने की घोषित योजना पर काम करता आ रहा है। 2021 में उसकी 14वीं पंचवर्षीय योजना में ऐसे कई बांधों का जिक्र है, जो चीन ब्रह्मपुत्र के ऊपरी और मध्यवर्ती प्रवाह पर बना रहा है। इनमें एक जागमू नामक पनबिजलीघर तो पहले से चालू है। कुछ बांध ऐसे भी हैं जिन्हें बनाने में उसके सामने कई तरह की तकनीकी दिक्कतें आ रही हैं। लेकिन भारत की आपत्तियों की चीन को परवाह नहीं है। चीन भारत के साथ कोई जलसंधि करने के लिए भी तैयार नहीं है, जबकि ब्रह्मपुत्र के प्रवाह के निचले हिस्से पर भारत का पूरा अधिकार है।
सवाल तो उठता ही है, भारत के पास चीन की इन कार्रवाइयों को थामने, उसे पीछे धकेलने और अपनी जमीन वापिस हासिल करने का कोई ब्लूप्रिंट है? 2017 में डोकलाम में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई हिंसा के बाद से लगता है कि हमने हथियार डाल दिये हैं। यह बहुत ही गंभीर मामला है। हम अपनी सीमाओं के पूरी तरह सुरक्षित होने की बात करते हैं, हम विश्व गुरू होने की बात करते हैं, और भी तमाम दावे करते हैं, लेकिन चीन की हरकतों का जवाब नहीं दे पा रहे हैं। भारत सरकार की चुप्पी चौंकाने वाली तो है ही, दुखद भी है। हमारी जमीन चीन फिर से हड़प रहा है, कह सकते हैं हड़प चुका है, हम चुप हैं। वह और आगे बढ़ेगा, तब क्या करेंगे?
– संजय सक्सेना