Edirorial: इस चेतावनी को हलके में न लिया जाए…
हाल में आई एक खबर के अनुसार अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने अगले 600 वर्षों में दुनिया खत्म होने की चेतावनी दी है। इस दावे को कई लोग भ्रामक अवश्य बता रहे हैं, लेकिन इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता है कि जिस गति से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा रहा है, उसे देखते हुए इस पृथ्वी की आयु बहुत लंबी नहीं कही जा सकती। हम लगातार इसे अनदेखा ही कर रहे हैं।
नासा की चेतावनी का मुख्य आधार जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के बिगड़ते हालात पर केंद्रित बताई जा रही है। वैसे इस विषय को पहले भी कई बार दोहराया जा चुका है और पर्यावरणविद् लगातार कहते भी चले आ रहे हैं। जाने माने वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने भी चेतावनी दी थी कि पृथ्वी के लिए आने वाला समय काफी चुनौतीपूर्ण होगा। ये बातें सही भी हैं क्योंकि जिस तरह से हम अपनी प्रकृति के साथ व्यवहार कर रहे हैं और पृथ्वी की अनदेखी कर रहे हैं, उसके ऐसे ही गंभीर परिणाम होने हैं।
इस साल की शुरुआत में ही बढ़ती गर्मी और जंगलों की आग जैसी कई आपदाएं देखने को मिलीं। इस दौरान अत्यधिक गर्मी ने कई देशों के पिछले रिकॉर्ड तोड़ दिए। वहीं, मानसून के दौरान भारी वर्षा भी हुई। अनियमित बारिश के भी कई उदाहरण देखने को मिले तो कई शहरों में बाढ़ की अनियंत्रित स्थिति भी देखी गई। विशेष तौर पर देखा जाए तो एशियाई देशों में मानसूनी प्रभाव अधिक रहा, लेकिन अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया जैसे विकसित देशों में भी जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग का गहरा प्रभाव पड़ता दिख रहा है। पेरिस और नाइजीरिया की बाढ़ के अलावा अमेरिका में मिल्टन और भारत में दाना नामक तूफानों के अलावा हाल ही में स्पेन के वेलेंसिया में बाढ़ ने प्रमाण तो दे ही दिया कि हालात गंभीर हैं।
हमारी लापरवाही कहें या उदासीनता, कि हम चेतावनियों और संभावनाओं को हलके में लेने लगते हैं। लेकिन वही संभावनाएं अब यथार्थ बनती जा रही हैं। अक्टूबर का महीना भी इस वर्ष सबसे गर्म महीनों में से एक रहा है, और नवंबर में भी ऐसा ही रहने की संभावना है। उससे बाद अचानक भीषण ठंड का अनुमान लगाया जा रहा है, क्योंकि ‘ला नीना’ प्रभाव देखने को मिल सकता है। इस तरह की स्थितियां संकेत दे रही हैं कि भविष्य में हमें और कठिनाइयां उठानी पड़ सकती हैं। यह मावठा का वक्त नहीं है, लेकिन कई स्थानों पर बूंदाबांदी की संभावना मौसम विभाग व्यक्त कर रहा है।
ऐसा पहली बार नहीं है जब पृथ्वी पर इस तरह की स्थितियां बनी हैं; इससे पहले भी लाखों साल पहले बड़े जलवायु परिवर्तन हुए थे। उनका कारण ज्वालामुखियों का फटना या फिर बड़े बड़े उल्काओं का टकराना रहा। उस समय पृथ्वी पर संतुलन स्थापित हो रहा था, और ऐसी हलचल स्वाभाविक भी थी। लेकिन अब जो हो रहा है, ये सब मनुष्य की ही देन है और उसके कारण पृथ्वी का व्यवहार बदल रहा है। आज हम जिस तरह अपने लाभ के लिए प्रकृति का संतुलन बिगाड़ रहे हैं, उसके कारण पृथ्वी पर जीवन का अंत और निकट आ सकता है।
थोड़ा और गहराई में जाएं तो हमें कई तरह के और प्रमाण एवं संकेत मिल रहे हैं। दुनिया में कई तरह की प्रजातियां पूरी तरह समाप्त हो चुकी हैं, इनमें वन्य प्रजातियां, कीट और अच्छे बैक्टीरिया शामिल हैं। वनस्पतियों की भी हजारों प्रजातियां खत्म होती जा रही हैं। बीमारियों के वैक्टीरिया की किस्में भी बढ़ रही हैं। हाल में आए कोविड के बाद उसके बैक्टीरिया ने ही दर्जनों रूप बदले हैं। आज तो हाल ये है कि साधारण जुकाम तक को कोविड का बदला हुआ स्वरूप चिकित्सक बताने लगे हैं।
बीमारियों की ही बात करें तो आज चिकित्सीय अनुसंधान बहुत आगे निकल चुका है। तमाम असाध्य बीमारियों का इलाज सुलभ हो गया है। इसके बाद भी बीमारियों की संख्या में बढ़ोत्तरी हो रही है। इस समय मौसम परिवर्तन का दौर चल रहा है, गले का इन्फेक्शन और एलर्जी इस कदर हो रही है कि दवाइयां असर ही नहीं कर पा रही हैं। डोज बढ़ानी पड़ रही है। डेंगू का बुखार नहीं आ रहा है और रक्त पट्टिकाएं यानि ब्लड प्लेटलेट्स कम होने लगती हैं। अचानक तेजी से गिरने पर सीधे प्लाज्मा देना पड़ रहा है और कई बार आर्गन फेल्योर की स्थिति बन रही है। इसी तरह टेस्ट में चिकनगुनिया नहीं आ रहा है और जोड़ों में दर्द व अकडऩे की तकलीफ हो रही है।
ये तो कुछ उदाहरण हैं। और यदि हम ये कहें कि ऐसी बीमारियों या तरह तरह के बैक्टीरिया की उत्पत्ति कोई गंभीर बात नहीं है, तो हम गलत हैं। इसका संबंध भी प्राकृतिक परिवर्तनों से है। इतना ही नहीं, मानव स्वभाव में आ रहे परिवर्तन भी हमें कुछ संकेत दे रहे हैं। खत्म होती संवेदनशीलता और उदारता, बढ़ती कट्टरता, दिमाग पर खत्म होता नियंत्रण, बिखरते परिवार और बढ़ती क्रूरता..हजारों लक्षण हमें विनाश की कगार पर ही तो ले जा रहे हैं। हमें जागना ही होगा। केवल हमें इन संकेतों को पढऩा ही नहीं होगा, प्रकृति और जीवन को बचाने के लिए प्रयास करने ही होंगे।
– संजय सक्सेना