Edirorial: फर्जी आंकड़ों के आधार पर पुरस्कार का खेल!

सरकारी विभागों और उपक्रमों में भी जमकर फर्जीवाड़ा चलता है, यह खुलासा कैग की रिपोर्ट एक बार नहीं, बार-बार करती हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि कैग सरकार द्वारा स्थापित जैसी संस्था को भी गंभीरता से नहीं लिया जाता। कैग की ताजा रिपोर्ट ने मध्यप्रदेश की विद्युत कंपनियों के गड़बड़झाला को उजागर किया है, जिसमें फर्जी आंकड़े दिखाकर केंद्र सरकार से सौ-सौ करोड़ के पुरस्कार ले लिए गए।
असल में केंद्र सरकार ने 24 अक्टूबर 2018 को एक पुरस्कार शुरू किया था। इसमें सौभाग्य योजना का कंपनी स्तर पर 30 नवंबर 2018 तक 100 फीसदी घरेलू कनेक्शन देने का टारगेट दिया गया था। मध्यप्रदेश की दो कंपनियों ने पश्चिम व मध्य विद्युत वितरण कंपनी ने इस टारगेट को पूरा करने का प्रमाण पत्र केंद्र सरकार को भेज दिया था। इसके आधार पर केंद्र ने दोनों कंपनियों को 100-100 करोड़ रुपए का पुरस्कार दे दिया गया, जबकि कैग की रिपोर्ट के मुताबिक यह टारगेट 2019 में पूरा हुआ।
पुरस्कार की अवधि निकल जाने के बाद मध्य क्षेत्र कंपनी ने 4 हजार 725 घरों में कनेक्शन करने के 24 वर्क ऑर्डर दिसंबर 2018 में जारी किए गए थे। यह काम अक्टूबर 2019 में पूरा किया गया था। इसी तरह पश्चिम क्षेत्र कंपनी ने यह लक्ष्य जून 2019 में पूरा किया था। सौभाग्य योजना के तहत दूर-दराज के ऐसे गांव, जहां बिजली की पहुंच नहीं है, वहां केंद्र सरकार ने हर परिवार को सोलर एनर्जी से 200 वॉट बिजली देने का फैसला किया था। इसके लिए हर घर में एक यूनिट लगाई जानी थी। प्रति यूनिट 31,348 रुपए हजार खर्च आना था।
मध्यप्रदेश सरकार को इस योजना के लिए 1871 करोड़ रुपए मिले थे। राज्य सरकार ने कहा था कि वह योजना पर 10 प्रतिशत राशि व्यय करेगी। कैग की रिपोर्ट कहती है कि पूर्व क्षेत्र कंपनी ने इसके लिए कर्ज लिया और उसे मार्च 2022 तक ब्याज के तौर पर 24 करोड़ रुपए देने पड़े। रिपोर्ट में कहा गया है कि मध्यप्रदेश में बिजली कंपनियों ने पहले 50 वॉट के पैनल 17,622 रुपए और फिर 150 वॉट के पैनल 24,774 रुपए में लगाए। इस तरह हर यूनिट पर 11 हजार रुपए अतिरिक्त खर्च किए गए।
नया कनेक्शन देने के लिए केबल का खर्च 3 हजार रुपए फिक्स था, लेकिन पूर्व क्षेत्र कंपनी ने दो तरह के केबल का इस्तेमाल किया। एक केबल के लिए 3514 रुपए और दूसरे के लिए 4461 रुपए के हिसाब से भुगतान कर दिया। ऐसे में प्रति कनेक्शन 946 रुपए का भुगतान किया गया। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि इससे कंपनी को 11 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ।
एक और अनियमितता सामने आई। कैग के अनुसार सौभाग्य योजना के तहत बिजली कनेक्शन का ठेका ई-टेंडर के माध्यम से दिया जाना था, लेकिन पूर्व व पश्चिम विद्युत वितरण कंपनियों ने 1 लाख 38 हजार घरेलू कनेक्शन के लिए टुकड़ों में 4 हजार से ज्यादा वर्क ऑर्डर निकाल दिए। इनके जरिए 50 करोड़ 62 लाख रुपए का भुगतान कर दिया। इसी तरह कनेक्शन के लिए 4 एमएम का तार इस्तेमाल करना था लेकिन कैग ने जांच में पाया कि तीनों कंपनियों ने 3 लाख 36 हजार से ज्यादा घरों में बिजली कनेक्शन के लिए 2.5 एमएम के तार का इस्तेमाल किया।
पता चला है कि सौभाग्य योजना की कार्ययोजना ही गलत बनाई गई थी और यह खुलासा भी कैग ने किया है। बिजली कंपनियों ने पहले बताया कि 9 लाख घर ऐसे हैं, जहां बिजली नहीं है। जब डीपीआर बनी तो ऐसे घरों की संख्या 9 लाख 77 हजार 056 हो गई। जब इसे संशोधित किया गया तो यह संख्या घटकर 5 लाख 4 हजार 841 रह गई जबकि वास्तविक घरों की संख्या 5 लाख 9 हजार 53 है।
यह रिपोर्ट साफ बताती है कि अधिकारियों द्वारा योजनाओं के क्रियान्वयन में किस तरह की और कितनी अनियमितताएं की जाती हैं। केंद्र सरकार के समक्ष फर्जी आंकड़े प्रस्तुत करके पुरस्कार तक ले लिए जाते हैं और सरकार लगातार सच्चाई को छिपाती रहती है। अभी आई कैग की रिपोर्ट ने इसका खुलासा तो कर दिया है, लेकिन चूंकि सरकार में बैठे अधिकारी दूसरे अधिकारियों को बचाने का प्रयास करते हैं, तो अब कैग की रिपोर्ट को भी भ्रष्टाचार की अलमारियों में दफन कर दिया जाएगा।
देखने में आया है कि कैग जैसी संस्थाएं लगातार सर्वेक्षण करके योजनाओं पर होने वाले अमल की रिपोर्ट तैयार करती हैं। ये सैम्पल सर्वे करती हैं, तब भी लगभग हर दूसरी-तीसरी योजना में घालमेल सामने आता है, अनुमान लगाएं यदि पूरा सर्वेक्षण किया जाएगा तो क्या होगा? इसके बाद भी कैग की रिपोर्ट आती है, विधानसभा के पटल पर रख दी जाती है। कई बार तो इस पर सदन में चर्चा तक नहीं होती या हो पाती। और बाद में इस रिपोर्ट को रद्दी के ढेर के तौर पर एक तरफ रख दिया जाता है। बहुत होता है तो लीपापोती करते हुए ऐसा जवाब दे दिया जाता है, कि कोई अनियमितता या घोटाला हुआ ही नहीं।
यहीं देख लें। केंद्र की सौभाग्य योजना के जिस हिस्से की रिपोर्ट कैग ने बनाई, उसकी डीपीआर ही गलत बना दी गई। लक्ष्य पूरा बाद में हुआ और पुरस्कार पहले हासिल कर लिया गया। इस पर कोई चर्चा तक नहीं हो रही, कार्रवाई की उम्मीद कैसे की जा सकती है। असल में यह सरकारी कार्यप्रणाली का ही एक हिस्सा बन गया है। फर्जी आंंकड़े दिखाकर योजनाएं पूरी कर लेते हैं और अधिकारी पुरस्कार ले कर आ जाते हैं, असलियत कुछ और होती है। लेकिन मजाल है कि किसी पर कार्रवाई की जाए। गोलमाल है भाई सब गोलमाल है।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

Related Articles