राजनीति में आना मेरी सबसे बड़ी भूल है। इच्छा थी कि कुछ पठन-पाठन करूंगा। अध्ययन और अध्यापन की पारिवारिक परंपरा को आगे बढ़ाऊंगा। अतीत से कुछ लूंगा और भविष्य को कुछ दे जाऊंगा। किंतु राजनीति की रपटीली राह में कमाना तो दूर रहा, गांठ की पूंजी भी गंवा बैठा। मन की शांति मर गई। संतोष समाप्त हो गया।
ये उस महान व्यक्तित्व का कथन है, जिसने भारतीय राजनीति में अपना विशेष स्थान बनाया और जिसे भारत रत्न से अलंकृत किया गया। देश के तीन बार प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी का आज सौवां जन्म दिवस सुशासन दिवस के रूप में मनाया जा रहा है। उनका जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में एक शिक्षक के घर में हुआ था। बचपन से नटखट स्वभाव के अटल बिहारी देश की गंभीर राजनीति के माइल स्टोन कैसे बन गए, यह प्रेरणादायक कहानी है।
अटल बिहारी वाजपेयी अपनी वक्तृत्व कला के लिए प्रसिद्ध थे। वे जब भी किसी जनसभा में शामिल होते थे, भाषण से पहले और बाद में काली मिर्च और मिश्री का सेवन करते थे। खासतौर पर उनके लिए मथुरा से मिश्री मंगवाई जाती थी। उनका भाषण सुनने के लिए आम लोग तो पहुंचते ही थे, हर दल के नेता भी सुना करते और तारीफ किए बिना नहीं रहते।
अटल बिहारी वाजपेयी एक आदर्श राजनेता थे। वे पहले ऐसे प्रधानमंत्री थे जिन्होंने 26 राजनीतिक दलों के साथ मिलकर सरकार बनाई। वे तीन बार भारत के प्रधानमंत्री बने। उनके जीवन के प्रारंभिक दिनों में वे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हुए। हालांकि, उनकी बहन अक्सर उनकी खाकी पैंट फेंक देती थीं क्योंकि उनके पिता सरकारी कर्मचारी थे और परिवार चाहता था कि वे राजनीति से दूर रहें।
पूर्व प्रधानमंत्री का जन्म 25 दिसंबर 1924 को ग्वालियर में हुआ। एक शिक्षक के घर में जन्मे अटलजी के बचपन से लेकर जवानी के किस्से आज भी ग्वालियर की गलियों में चर्चा का विषय होते हैं। पिता पंडित कृष्ण बिहारी वाजपेयी उत्तर प्रदेश के बटेश्वर से मध्य प्रदेश की ग्वालियर रियासत में शिक्षक की नौकरी करने आए थे। मां कृष्णा अटल को विशेष लाड़ करती थीं। अटल बिहारी वाजपेयी की संजीदगी को देखकर ये अंदाजा लगाना मुश्किल है कि उनका बचपन बेहद नटखट और शरारतों से भरा हुआ था। अटल जी का बचपन ‘कंचे’ खेलते हुए बीता है। उनको बचपन से जानने वाले बताते हैं कि अटल जी कमल सिंह के बाग की गलियों में खेलते हुए बड़े हुए थे। खेलों में उन्हें सबसे ज्यादा कंचे खेलना पसंद था।
बचपन से ही कवि सम्मेलन में जाकर कविताएं सुनना और नेताओं के भाषण सुनना और जब मौका मिला तो ग्वालियर के व्यापार मेले में जाकर मौज-मस्ती करना उनका स्वभाव था। अटल बिहारी वाजपेयी आईने के सामने खड़े होकर कविता बोलते थे। बचपन से अपनी स्पीच की रिहर्सल करना उनकी आदत थी। ग्वालियर का विक्टोरिया कॉलेज अब महारानी लक्ष्मीबाई कॉलेज में तब्दील हो चुका है, अटल बिहारी वाजपेयी ने इस कॉलेज से बीए किया। वह भी हिंदी, अंग्रेज़ी और संस्कृत में डिस्टिंक्शन के साथ। इस कॉलेज की वाद-विवाद प्रतियोगिता के अटल बिहारी वाजपेयी हीरो हुआ करते थे। विक्टोरिया कॉलेज का यही हीरो आगे चलकर हिंदुस्तान का हीरो बना।
बात 2004 की है, तब अटल जी प्रधानमंत्री थे। वे अपना जन्मदिन मनाने ग्वालियर आए थे। उस समय अटल जी से वीआईपी सर्किट हाउस में एक मंगौड़े बेचने वाली महिला रामदेवी चौहान मिलने पहुंचीं। उन्होंने कहा कि आप मंगौड़े खाने मेरी दुकान (टपरी) पर आते थे। वाजपेयी ने पूछा-अम्मा तू अभी जिंदा है। तभी अम्मा ने मंगौड़े की थैली आगे बढ़ाते हुए सहज अंदाज में कहा कि अब तो आप देश के मुखिया हो, मुझे एक गुमटी तो दिलवा दो। यह बात और है कि उस अम्मा को जीते जी गुमटी नहीं मिल पाई और आज उसका बेटा ठेले पर ही मंगोड़े बनाकर बेचता है, लेकिन अटल जी ने तत्कालीन मुख्यमंत्री से उसकी सिफारिश अवश्य की थी।
गौर करते हैं अटल जी के चुनिंदा उन वाक्यों पर, जो आज भी प्रेरणा देते हैं और अटलजी के विशेष व्यक्तित्व को प्रमाणित करते हैं-
छोटे मन से कोई बड़ा नहीं हो सकता , टूटे मने से कोई खड़ा नहीं हो सकता।
जीवन को टुकड़ों में नहीं बांटा जा सकता, उसका पूर्णता में ही विचार किया जाना चाहिए।
व्यक्ति को सशक्त बनाने का मतलब है राष्ट्र को सशक्त बनाना। और सशक्तीकरण सबसे अच्छी तरह से तीव्र आर्थिक विकास के साथ तीव्र सामाजिक परिवर्तन के माध्यम से किया जाता है।
हम युद्धों में अपने बहुमूल्य संसाधनों को अनावश्यक रूप से बर्बाद कर रहे हैं, हमें बेरोजगारी, बीमारी, गरीबी और पिछड़ेपन पर ऐसा करना होगा।
संघर्ष से भागो मत, क्योंकि संघर्ष से ही जीवन की मिठास आती है।
कभी भी अपनी गलतियों को छुपाने की कोशिश मत करो, इससे आप खुद को और दूसरों को धोखा देंगे।
आप दोस्तों को बदल सकते हैं, लेकिन पड़ोसियों को नहीं।
देशभक्ति का मतलब सिर्फ प्रेम नहीं, बल्कि देश के प्रति जिम्मेदारी भी है।
हमारा लक्ष्य अनंत आकाश जितना ऊंचा हो सकता है, लेकिन हमें अपने मन में हाथ से हाथ मिलाकर आगे बढऩे का संकल्प लेना चाहिए, क्योंकि जीत हमारी ही होगी।
आप शांति को स्वतंत्रता से अलग नहीं कर सकते क्योंकि कोई भी व्यक्ति तब तक शांति में नहीं रह सकता जब तक उसे अपनी स्वतंत्रता न मिले।
मेरा कवि हृदय मुझे राजनीतिक समस्याओं का सामना करने की शक्ति देता है, खासकर उन समस्याओं का जो मेरे विवेक पर असर डालती हैं।
जीत और हार जीवन का हिस्सा हैं, जिन्हें समभाव से देखा जाना चाहिए।
भ्रष्टाचार के बारे में कोई समझौता नहीं हो सकता।
अपना देश एक मन्दिर है, हम पुजारी हैं, राष्ट्रदेव की पूजा में हमने अपने आपको को समर्पित कर देना चाहिए।
ऊँची से ऊँची शिक्षा क्यों न हो, इसका आधार हमारी मातृभाषा होनी चाहिए।
जलना होगा, गलना होगा और हमें कदम मिलाकर एक साथ चलना होगा।
इंसान बनो। केवल नाम से नहीं, रूप से नहीं, शक्ल से नहीं। हृदय से, बुद्धि से, संस्कार से, ज्ञान से।
मन हारकर मैदान नहीं जीते जाते, न मैदान जीतने से मन जीते जाते हैं।
– संजय सक्सेना