Edirorial: दिल्ली चुनाव: भाजपा से ज्यादा आक्रामक कांग्रेस
दिल्ली विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। सेनाएं आमने सामने डट गई हैं। हालांकि वर्तमान राजनीतिक परिस्थितियों में कोई भी अनुमान लगा पाना आसान काम नहीं है, लेकिन माना जाता है कि दिल्ली में त्रिकोणीय मुकाबला होगा जहाँ आप, भाजपा और कांग्रेस के बीच कड़ी प्रतिस्पर्धा की उम्मीद की जा रही है। आप की लोकप्रियता को चुनौती देते हुए विरोधी पार्टियों ने भ्रष्टाचार और अधूरे वादों के मुद्दे उठाए हैं।
पिछले लोकसभा चुनावों में सभी सातों सीटें जीतने के बाद भाजपा इस बार सत्ता में आने के लिए हरसंभव कोशिश कर रही है। भले ही दिल्ली पूर्ण राज्य नहीं है, और केंद्र का दखल वर्तमान में कुछ ज्यादा ही बढ़ा है, लेकिन सत्ता के लिए जो बिसात बिछी है, उससे जाहिर है कि दिल्ली का राजनीति महत्व किसी अन्य राज्य से कम नहीं। चुनाव की घोषणा के वक्त से ही साफ हो गया था कि इस बार मुकाबला वाकई त्रिकोणीय होगा। तभी तो एक दशक से दिल्ली में सत्तारूढ़ आप को पहली बार कड़ी चुनौती मिल रही है।
खास बात यह है कि मोदी लहर में भी आप न सिर्फ दिल्ली का दुर्ग बचाने में सफल रही, अपितु उसने कांग्रेस से पंजाब भी छीन लिया और राष्ट्रीय दल का दर्जा भी हासिल कर लिया। उसके दबदबे का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 1998 से 2013 तक दिल्ली में लगातार तीन बार सरकार बनाने वाली कांग्रेस का दो बार से विधानसभा चुनाव में खाता तक नहीं खुला और लगातार तीसरी बार केंद्र में सरकार बनाने वाली भाजपा बमुश्किल तीन से आठ सीटों तक पहुंच पाई।
फिर भी माना जा रहा है कि 2025 के चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले के आसार हैं। इसके कुछ कारण भी हैं। असल में आप का जन्म जन लोकपाल की मांग को लेकर समाजसेवी अन्ना हजारे के चर्चित आंदोलन के बाद हुआ, जो सीधे-सीधे कांग्रेस के खिलाफ ही था। आप और उसके संयोजक अरविंद केजरीवाल की छवि स्वाभाविक ही वैकल्पिक राजनीति के अगुआ और ईमानदार की बन गई। तब भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरी कांग्रेस से जनता का तेजी से मोह भंग हो रहा था। ऐसे में कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक रहे गरीब, दलित और अल्पसंख्यक आप की ओर चले गए।
दूसरी बात, केजरीवाल आज भी दिल्ली के सबसे लोकप्रिय नेता माने जाते हैं, लेकिन हाल के घटनाक्रम उनकी साख पर सवालिया निशान लगाए हैं। उनकी सबसे बड़ी ताकत, उनकी ईमानदार नेता की छवि पर न केवल विरोधियों की तरफ से संगीन आरोप लगे हैं, इनमें शीशमहलनुमा आवास और शराब नीति घोटाले शामिल हैं। शराब नीति घोटाले में केजरीवाल के साथ ही और कुछ प्रमुख नेताओं को जेल जाना पड़ा।
हालांकि आप इसे केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग और राजनीतिक उत्पीडऩ का मामला बता रही है। ये आरोप कांग्रेस भी लगाती रही है, लेकिन अब कांग्रेस के सुर बदल गए हैं। यमुना सफाई समेत कुछ वायदे अधूरे हैं। शायद इसलिए भी मतदाताओं को लुभाने के लिए संजीवनी और महिला सम्मान योजना की जरूरत पड़ रही है। बेशक मुफ्त पानी, बिजली, मोहल्ला क्लीनिक और बेहतर सरकारी स्कूल जैसे काम आप के पास हैं गिनाने के लिए, लेकिन इनमें से ज्यादातर तो पहले कार्यकाल में हो गए थे। दूसरे कार्यकाल में क्या हुआ?
पिछले तीन लोकसभा चुनावों में दिल्ली की सातों सीटें जीतने वाली भाजपा लगातार आप सरकार के विरुद्ध आक्रामक बनी हुई है। इस बीच कुछ बड़े नेता भी आप का दामन छोड़ गए। आप के कुछ बड़े नेताओं को तोडऩे में भाजपा भी सफल रही है। लेकिन अब माना जा रहा है कि कांग्रेस ने आप के लिए इस चुनाव को ज्यादा मुश्किल बना दिया है। लोकसभा चुनाव तक दोस्त रही कांग्रेस इस बार केजरीवाल के विरुद्ध भाजपा से भी ज्यादा आक्रामक दिख रही है। इसके पीछे मुख्य कारण भी आप और केजरीवाल ही हैं। पहले कांग्रेस के खिलाफ बोलने की शुरुआत उन्होंने ही की, जबकि दोनों दल इंडिया गठबंधन के सदस्य हैं और लोकसभा चुनाव साथ लड़ा था।
जिस शराब नीति घोटाले ने आप को बड़े संकट में डाला, उसकी शिकायत कांग्रेस ने ही की थी। हाल ही में महिला सम्मान योजना में फर्जीवाड़े की आशंका की शिकायत लेकर भी कांग्रेस के संदीप दीक्षित ही नए उपराज्यपाल के पास पहुंचे। उन्होंने यह भी कहा है कि पंजाब पुलिस कांग्रेस , उम्मीदवारों की जासूसी कर रही है और दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए पंजाब से कैश लाया जा रहा है। इन शिकायतों पर जांच के आदेश भी हो गए।
कांग्रेस और भाजपा, दोनों आप के प्रमुख नेताओं की चुनावी घेराबंदी करने में जुटी हैं। केजरीवाल के विरुद्ध भाजपा ने अपने पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे और पूर्व सांसद प्रवेश वर्मा को उम्मीदवार बनाया है। कंाग्रेस ने पूर्व सीएम शीला दीक्षित के बेटे संदीप को उतारा है। केजरीवाल सरकार में उपमुख्यमंत्री रहे मनीष सिसोदिया के विरुद्ध जंगपुरा से कांग्रेस ने पूर्व मेयर फरहाद सूरी को तो भाजपा ने सिख नेता तरविंदर सिंह मारवाह को उम्मीदवार बनाया है।
कांग्रेस की कोशिश अपना वोट बैंक वापस हासिल करने की है, जिस पर कब्जा कर आप दिल्ली की राजनीति में अजेय बन गई है तो पिछले तीनों लोकसभा चुनाव में सभी सातों सीटें जीतने के बावजूद हर विधानसभा चुनाव में अपमानजनक हार का कड़वा घूंट पीने को मजबूर भाजपा लगभग 27 साल से दिल्ली की सत्ता से वनवास झेल रही है। माना जा रहा है कि कांग्रेस अपने वोट बैंक का एक ठीकठाक हिस्सा भी वापस पाने में सफल हो गई तो आप इस बार सत्ता से बाहर भी हो सकती है। और फिर भाजपाअपने मकसद में कामयाब हो जाएगी। त्रिकोणीय संघर्ष में ऐसे ही परिणामों की उम्मीद की जा सकती है।
– संजय सक्सेना