Edirorial: डीपसीक से हलचल… अमेरिका के लिए चुनौती

टैक्नालाजी में अमेरिका बहुत आगे हो सकता है, लेकिन दुनिया के दूसरे देशों को इस मामले में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। हाल ही में चीन के डीपसीक-प्रकरण ने यह उजागर किया है कि अमेरिकी एआई उद्योग अन्य विकल्पों के प्रति गंभीर नहीं है। इसलिए सवाल उठ रहा है कि क्या अमेरिकी टेक कंपनियां अपने मॉडलों को एक अधिक मनुष्य-केंद्रित दिशा में ले जाने का अवसर चूक रही हैं?
इसके साथ ही यह सवाल भी उठाया जा रहो है कि क्या चीन अमेरिका से आगे निकल रहा है? यदि ऐसा है, तो क्या इसका मतलब यह है कि तानाशाली व्यवस्था भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में हो रहे अनुसंधान और खोजों की न केवल बराबरी कर सकता है, बल्कि उनसे बेहतर प्रदर्शन भी कर सकती है। कहीं न कहीं डीपसीक की सफलता ने अमेरिका के साथ ही अन्य विकसित देशों को हैरान ही कर दिया है।
जानकार मानते हैं कि डीपसीक अमेरिका, और कुछ हद तक यूरोप में वर्षों की प्रगति पर आधारित है। इसके सभी बुनियादी सिद्धांत अमेरिका में ही विकसित हुए थे। अमेरिका की बिग टेक फर्मों ने ही ट्रांसफॉर्मर मॉडल, चेन-ऑफ-थॉट रीजनिंग और डिस्टिलेशन की शुरुआत की, जिन्होंने आगे चलकर एआई की आधारशिला रखी।
कहा जा रहा है कि डीपसीक दूसरी चीनी एआई फर्मों से इन मायनों में अलग है, क्योंकि चीन में विकसित होने वाली अधिकतर टेक्नोलॉजी सरकार के लिए या सरकारी फंडिंग से होती है। इसलिए आशंका भी हो रही है कि कहीं डीपसीक की रचनात्मकता और गतिशीलता उसके दुनिया की नजरों में आने के बाद रोक तो नहीं दी जाएगी।
भू-राजनीति से संबंधित सवाल यह है कि क्या चीनी एआई रिसर्च को रोकने के लिए अमेरिका ने निर्यात में नियंत्रण सहित दूसरे जो उपाय किए थे, वे नाकाम हुए हैं? इसका उत्तर भी अस्पष्ट है। क्योंकि डीपसीक ने अपने नवीनतम मॉडल वी 3 और आर1 को पुराने और कम शक्तिशाली चिप पर ट्रेन किया है, इसे आगे ले जाने के लिए उसे और शक्तिशाली चिप की आवश्यकता हो सकती है।
माना तो यही जा रहा है कि जो देश पहले एजीआई यानि आर्टिफिशियल जनरल इंटेजिलेंस विकसित कर लेगा, उसका भू-राजनीति की दुनिया में दबदबा होगा। डीपसीक भी एजीआई को डेवलप करना चाहता है और वो ऐसा मॉडल बनाना चाहता है, जिसे प्रशिक्षित करना सस्ता हो। यह गेम-चेंजर साबित हो सकता है। यही कारण है कि डीपसीक ने अमेरिकी टेक इंडस्ट्री के अति-आत्मविश्वास को हिला जरूर डाला है। जब अमेरिका और यूरोप में इसे लेकर हलचल है तो हम तो अभी बहुत पीछे हैं। हम चीन की हर बात की आलोचना करते हैं, जबकि हमें चीन में हो रहे शोध-अनुसंधान और औद्योगिक क्रांति का न केवल अध्ययन करना चाहिए, अपितु अपने देश में उस पर काम तेज करना चाहिए। 

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