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Birthday: दुष्यंत कुमार ने हिंदी साहित्य के मिजाज के साथ कविता के चरित्र को भी बदल दिया..

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विनम्र श्रद्धांजलि…
जन्म 1 सितंबर 1931
अलीम बजमी
हिंदी गजल के सशक्त हस्ताक्षर दुष्यंत कुमार त्यागी का जन्म आज ही के दिन हुआ था।  अल्प समय में उन्होंने नश्वर संसार को अलविदा कह दिया। यूं उनके जाने की उम्र नहीं थीं। लेकिन नियति के आगे सब विवश हैं। उनके जाने से देश-दुनिया इंकलाबी रचनाओं से महरुम हो गई। हंसते-हंसते व्यंग्य की शक्ल में कुछ कहने का फन उनका अनूठा और अलहदा था। उनके बारे में मशहूर है कि हिंदी साहित्य के मिजाज को बदलने के साथ कविता के चरित्र को भी उन्होंने बदल दिया।
अपनी रचनाओं के कारण उन्हें देश-दुनिया में लोकप्रियता मिली। व्यवस्था के खिलाफ अपना विरोध दर्ज कराने अपने तरकश से कई शब्द बाण निकाले। इनका उपयोग राजनीतिक रैलियों, सम्मेलनों से लेकर संसद तक में हुआ। यद्यपि उर्दू शायरी में ताज भोपाली और कैफ भोपाली जैसी शख्सियतों का भोपाल में जलवा-जलाल था। यानी उर्दू गजल के नाम पर दोनों भोपाल के एम्बेसेडर थे। लेकिन दोनों के नाम की चमक के चलते दुष्यंत कुमार गजल की दुनिया में खूब चमके थे, तब हिंदी साहित्य जगत में आदरणीय अज्ञेयजी और परम सम्मानीय गजानन माधव मुक्तिबोध का नाम था। इन दोनों की अपार ख्याति थीं। इसी दौरान बाबा नागार्जुन जैसे कवि को भी देश आत्मीयता के साथ सुना करता था। बाबा नागार्जुन  की तो तू- ती बोलती थीं। इस सबके बीच दुष्यंत कुमार ने अपनी अलहदा जगह बनाई। उनकी गजलों ने हिंदी गजलों को आम आदमी से जोड़ा। बल्कि आम आदमी के लबो-लहजे पर ला दिया। उन्होंने कविताएं, नाटक, लघु कहानियां भी लिखीं हैं।
दुष्यंत कुमार ने शासकों के दोहरे चरित्र, नैतिकता के पतन पर खूब लिखा….
देश की दुर्दशा को देखकर एक बार कहा था…
मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ
हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है
हालांकि वास्तविक जीवन में वे बहुत सरल, सहज, सौम्य थे। यूं कहे, हंसमुख, मनमौजी भी थे। लेकिन उनके बारे मान्यता है कि उनकी गजलों में व्यवस्था के खिलाफ आक्रोश था। युवाओं की बैचेनी थीं।  मेहनतकशों की सिसकियां, कमजोर वर्ग का दर्द, नाइंसाफी की पीड़ा थीं। राजनीति के कुकर्मों के खिलाफ नए तेवरों की आवाज थीं। इसमें शामिल थीं, मध्यमवर्गीय परिवार की वेदना, पीड़ा। इमरजेंसी के वक्त उनका कविमन विचलित हो गया था। व्यवस्था के तौर-तरीकों से क्षुब्ध था। आक्रोशित मन में कई सवाल थे। इसके चलते कुछ कालजयी गजलों के रूप में उनकी अभिव्यक्ति ने सबको झंझोड़ डाला। राजनीतिक क्षेत्र में भ्रष्टाचार, प्रशासन तंत्र की संवेदनहीनता उनकी गजलों का स्वर था।  हालांकि शासकीय सेवक के रूप में सरकार विरोधी रचना लिखने का खमियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा। उनकी गजलों ने हिंदी गजलों को आम आदमी से जोड़ा। बल्कि आम आदमी के लबो-लहजे पर ला दिया। गजल संग्रह साये में धूप में प्रकाशन के बाद हिदी जगत में क्रांति का शंखनाद हुआ। इस गजल संग्रह में यूं तो कई हिंदी गजलें थीं, लेकिन
यहां दरख्तों के साये में धूप लगती हैं,
चलो यहां से चलें और उम्र भर के लिए
मत कहो आकाश में कुहरा घना है,
यह किसी की व्यक्तिगत आलोचना है
ने लोकप्रियता के शिखर पर ला दिया।
लेकिन दुष्यंत कुमार रुकने-थमने का नाम नहीं था।
आम आदमी की पीड़ा को समझते हुए बोले….
हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,
हो कहीं भी आग लेकिन जलनी चाहिए
बुजुर्गों एवं नौजवानों को प्रोत्साहित करने उन्होंने लिखा
कैसे आकाश में सूराख नहीं हो सकता
एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों
वैसे उनकी अनमोल रचनाओं में शामिल हैं…
कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए,
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिंदुस्तान है
गूंगे निकल पड़े हैं, जुबां की तलाश में
सरकार के खिलाफ ये साजिश तो देखिए
वे स्वर्गीय भगवत सहाय और रामकिशोरी देवी के सुपुत्र थे। उनकी शुरुआती तालीम नहटौर, चंदौरी यूपी में हुई। वैसे दसवीं क्लास में आने के बाद उन्होंने लिखना शुरू कर दिया था। इंटर मीडिएट करने के दौरान आदरणीय राजेश्वरी कौशिक से उनका विवाह हुआ। वे भोपाल में जवाहर चौक स्थित सरकारी स्कूल में शिक्षका रही।अब वे भी संसार में नहीं हैं।दुष्यंत जी ने इलाहाबाद से बीए और एमए करने के बाद भोपाल का रुख किया।  वर्ष 1958 में आकाशवाणी दिल्ली में भी सेवाएं दी। प्रदेश के संस्कृति विभाग के अंतर्गत भाषा विभाग में भी रहे। कम उम्र में उन्होंने हिंदी साहित्य में अपना अमूल्य योगदान दिया। उनकी गजलों एवं कविताओं ने साहित्य जगत में दुष्यंत कुमार जी को अमर कर दिया। उनको विनम्र श्रद्धांजलि।
अलीम बजमी,
न्यूज एडिटर, दैनिक भास्कर भोपाल

फेसबुक वाल से साभार

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