Bhopal: पंडित नेहरू के कारण मिली थी, भोपाल को राजधानी की सौगात
सुखद संयोग दीपोत्सव के साथ राज्योत्सव
अलीम बजमी
भोपाल। दीपोत्सव ने हमें मध्य प्रदेश राज्य की सौगात दी। राजनीतिक चेतना के उजाले से हमारा प्रदेश जगमगाया। स्याह सियासी अंधेरे-उजाले में बदले। भोपाल को राजधानी का दर्जा मिला। ये सौगात तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के कारण मिली। इसके लिए हम पंडित जी के आभारी है। इस बार मध्य प्रदेश की वर्षगांठ का महत्व दीपावली के कारण अधिक है। दीपावली के दिन प्रदेश का गठन होना हम सबके लिए दीप्ति, द्युति, प्रकाश और प्रभा के मनोभावों पर्व के रूप में है। पंडित नेहरू के एक फैसले ने राजनीतिक आभा से आच्छादित किया था।
अपना मध्य प्रदेश 1 नवंबर 2024 को अपनी 68वीं वर्षगांठ मनाएगा। 69वें साल में प्रवेश कर रहे मध्य प्रदेश का जन्मोत्सव राज्य सरकार धूमधाम से मनाएगी। ये मौका गर्व का है। अभिमान का है। हर्ष और उल्लास का है। बधाई के आदान-प्रदान का है। ये अवसर दीपोत्सव का होने से भी इसका उत्सवरूपी आनंद ओर बढ़ जाता है। हांलाकि 1 नवंबर 1956 को जब मध्य प्रदेश का गठन हुआ था, तब भी पूरा प्रदेश और भोपाल दीपोत्सव पर्व मना रहा था। पीएम रहते हुए पंडित नेहरू 13 बार भोपाल आए। यद्यपि कुछ का दावा है कि पंड़ित नेहरू 16-19 बार भोपाल आए थे।भोपाल को राजधानी बनाने के लिए पंडित नेहरू का ध्येय भले ही राजनीतिक रहा हो। लेकिन भोपाल को देश-दुनिया के नक्शे में आने का सौभाग्य मिला। हमें पहचान मिली। यह हम सबके लिए गर्व की बात है कि आज विभिन्न संस्कृतियों की अनेकता में एकता जैसे आकर्षक गुलदस्ते के रूप में मध्य प्रदेश है। मध्य प्रदेश का सतरंगी सौंदर्य है। यहां की आबोहवा में आपसी भाईचारा, परस्पर स्नेह, कला, साहित्य और संस्कृति विद्यमान है। समृद्ध सांस्कृतिक विरासत है। मध्यप्रदेश विभिन्न लोक और जनजातीय संस्कृतियों का समागम है। बुंदेली, बघेली, मालवी, निमाड़ी जैसी भाषाएं चलन में है। इनमें आत्मीयता है। माधुर्य है। मप्र की वर्षगांठ के आनंद के चलते अगर फ्लैशबैक की स्थितियों का अवलोकन करें तो हमें कुछ-कुछ जानने-समझने को मिलता है।
तमाम दलीलें धरी रह गई
ये भी एक अहम तथ्य है कि 34 महीनों की मशक्कत के बाद मध्य प्रदेश की राजधानी के रूप में भोपाल का नाम एक पल में पंडित नेहरू ने फायनल कर दिया था। इस दौरान तमाम दलीलें धरी रह गई थीं। यह भी एक इत्तेफाक है कि मध्य प्रदेश के नक्शे को देखकर अकस्मात रूप से पंडित नेहरू ने कहा-ये तो भारत का हृदय प्रदेश है। उनके इस शब्द से मध्य प्रदेश को नाम मिल गया। यानी मध्य प्रदेश का नामकरण पंडित नेहरू ने किया।
भोपाल के पक्ष में बड़े कारण
यद्यपि राजधानी के लिए राज्य के इंदौर, ग्वालियर और जबलपुर में राजनीतिक रूप से काफी रसाकशी चल रही थी। भोपाल के चयन का बड़ा कारण यहां सरकारी दफ्तरों की दृष्टि से भवन ज्यादा होना एक कारण माना गया तो भोपाल शहर की दिल्ली – मुंबई रेल और एयर कनेक्टीविटी भी आधार बनी। भोपाल में सेकंड वर्ल्ड वॉर के समक्ष बैरागढ़ में एयरपोर्ट आकार ले चुका था। इसकी खासियत ये थी कि यहां बड़े-छोटे विमान उतर सकते थे। नए निर्माणों के लिए खुली भूमि, कार्यालयों के लिए भवन उपलब्ध होना भी रहा। इसके अलावा जलवायु का अनुकूल होना। पेयजल प्रबंध के साथ बिजली की उपलब्धता भी कारणों में शामिल रही।
राजनीतिक दृष्टि से हुआ निर्णय
दूसरी ओर कुछ का मत रहा कि जबलपुर के सेठ गोविंददास का कद राजनीतिक रूप से काफी ऊंचा था। कांग्रेस के भीतर उनका काफी प्रभाव था। पंड़ित नेहरू राजनीतिक रूप से उनके पक्ष में नहीं थे तो इंदौर-ग्वालियर में राजघराने के असर से वे बखूबी वाकिफ थे। वे जानते थे कि इंदौर-ग्वालियर का चयन करने पर कांग्रेस के भीतर नेतृत्व को लेकर नई राजनीतिक चुनौतियों खड़ी होगी। इन वजहों से जबलपुर, इंदौर और ग्वालियर राजधानी नहीं बन सका। ऐसा भी कहा जाता है कि विंध्य प्रदेश का समाजवादी आंदोलन कमजोर करने के लिए भी पंडित नेहरू ने भोपाल का चयन करना उचित समझा।
तब भोपाल की आबादी 50 हजार थी
मध्य प्रदेश राज्य का गठन तत्कालीन सीपी एंड बरार, मध्य भारत, विंध्यप्रदेश, और भोपाल राज्य को मिलाकर हुआ। उस वक्त भोपाल राज्य की हैसियत पार्ट-सी स्टेट के रूप में थीं। यानी ये राज्य मात्र तीन जिलों सीहोर, रायसेन और भोपाल में सिमटा हुआ था। ये भी जान लीजिये, जब भोपाल राजधानी बना था, तब इसकी शक्ल एक कस्बे से अधिक नहीं थीं। ये सीहोर जिले की हुजूर तहसील में था। जनसंख्या, आर्थिक आदि की दृष्टि से इंदौर, ग्वालियर की तुलना में पीछे था। तब भोपाल की आबादी बमुश्किल 50 हजार होना बताई जाती है।
संतुलन बनाने दफ्तरों को बांटा
भोपाल के राजधानी बनने के बाद राजनीतिक, प्रशासनिक संतुलन बनाने आदि की खातिर जबलपुर को हाईकोर्ट मुख्यालय जबकि इंदौर-ग्वालियर को हाईकोर्ट बैंच, इन तीनों शहरों को चुनिंदा विभागों का मुख्यालय बनाने का फैसला भी हुआ था।
पर्दे के पीछे सक्रिय रहे
वहीं, शेरे ए-भोपाल के नाम से मशहूर रहे खान शाकिर अली खान भोपाल को राजधानी बनाओ संघर्ष समिति बनाकर आंदोलन चला रहे थे। वहीं, भोपाल राज्य के मुख्यमंत्री के रूप में डॉक्टर शंकर दयाल शर्मा कांग्रेस के भीतर और बाहर राजनीतिक रूप से काफी सक्रिय रहे। वे चाहते थे कि भोपाल को नव गठित प्रदेश की राजधानी बनने का अवसर मिले। इसके चलते सबसे पहले उन्होंने पंडित नेहरू के करीबी मौलाना अबुल कलाम आजाद का विश्वास अर्जित किया। मौलाना आजाद का उन्हें भरपूर आशीर्वाद मिला। उधर, विदर्भ में अपनी ताकत रखने वाले कांग्रेस के दिग्गज नेता पंडित रविशंकर शुक्ल को भी तैयार किया। सुना है कि इसका सुझाव उन्हें तत्कालीन चीफ इंजीनियर मिर्जा फहीम बेग ने दिया था। वे भोपाल के पक्ष में राय कायम कराने के संबंध में भोपाल रियासत के पूर्व प्रधानमंत्री सर, राजा अवध नारायण बिसारिया से भी मिले थे। इस मुलाकात के समय पंडित रविशंकर शुक्ल, श्यामाचरण शुक्ल को भी साथ लेकर उनके बंगले पर गए थे। बताते हैं कि यह मुलाकात मध्य प्रदेश गठन की घोषणा के करीब पांच माह पहले हुई थीं। इसके कुछ दिन बाद दिल्ली में हुई एक बैठक में डॉ. शर्मा के सुझाव पर भवनों के चयन संबंध में मुहर लगी थीं। यानी नया सचिवालय बनने तक पार्ट – सी स्टेट के सेक्रेटेरिएट (अब ओल्ड सेक्रेटेरिएट यानी कलेक्टर ऑफिस) का उपयोग होगा। विधानसभा के रूप में मिन्टो हाल का उपयोग किया जाएगा। सीएम हाउस के रूप में भोपाल रियासत काल में बने आईना बंगला (बाद में आईजी हाउस) का इस्तेमाल होगा। ये अब वीआईपी गेस्ट हाउस कहलाता है।
भोपाल विधानसभा का कार्यकाल साढ़े चार साल रहा
पार्टसी स्टेट में शामिल भोपाल विधान सभा का कार्यकाल मार्च 1952 से अक्टूबर 1956 तक साढ़े चार साल रहा। तब भोपाल राज्य के सीएम डॉ. शंकर दयाल शर्मा एवं इस विधान सभा के अध्यक्ष सुल्तान मोहम्मद खां एवं उपाध्यक्ष लक्ष्मीनारायण अग्रवाल थे।
पहले सीएम रविशंकर शुक्ल बने
मध्य प्रदेश का गठन होने पर डॉ. पट्टाभि सीतारामैया पहले राज्यपाल जबकि पहले मुख्यमंत्री बनने का सौभाग्य पंडित रविशंकर शुक्ल को मिला था। इसी प्रकार पंडित कुंजीलाल दुबे को मध्यप्रदेश विधानसभा का पहला अध्यक्ष बनाया गया था। उसी समय मध्य प्रदेश के पहले मुख्य सचिव एच एस कामथ तो मध्य प्रदेश पुलिस के पहले आईजी बीजी घाटे बने थे। (फेसबुक वाल से साभार)