बहुत दिनों से मुसद्दी भइया से बात नहीं की। पहले बात आज कल पर टलती रही।फिर लगा कि अब गंजी चांद पर चमरौधा घूम सकता है..इस डर से फोन हाथ में लेने के बाद भी नंबर दबाने की हिम्मत नहीं कर पाया।इसी ऊहापोह में महीनों निकल गए।कल शाम को भोपाल में भइया के एक मुरीद मिल गए!देखते ही बिना किसी भूमिका के सवाल दाग दिया – क्यों पंडित जी आजकल तुम भी ठाकरों और पवारों की बीमारी का शिकार हो गए हो?मैं सवाल सुनकर चौंका.. चौंकना स्वाभाविक भी था।लेकिन बिना कोई पल गंवाए मैंने उन पर पलटवार किया..क्यों महाराज ऐसा क्या हो गया जो आप हमें कुरुमद्रोहियों से जोड़ रहे हो?
उन्होंने बड़ी ही कुटिलता से खींसे निपोरते हुए कहा – अरे आजकल आप अपने मुसद्दी भइया को फोन नहीं कर रहे हो।कोई बातचीत नहीं सुनाई दिखाई दे रही।हमें लगा कि “दीक्षित” लोग भी शायद गुजरातियों की छाया से गुजर गए!जो घर में अबोला हो गया है।आज आप दिख गए सो पूछ लिया।आंखे लाल काहे कर रहे हो।
इतना कह कर वे तो आगे बढ़ गए..लेकिन सवाल छोड़ गए। मैंने सोचा कि आज तो भइया को फोन लगाऊंगा ही!बहुत दिनों से लाड़दुलारी भौजी की आवाज भी नहीं सुनी..भतीजे दुःखभंजन की फरमाइश भी नहीं आई।भौजी अलग नया चूल्हा धरें और भतीजा “अजीत मार्गी” हो इससे पहले संवाद हो जाना चाहिए।तय किया कि आज शाम चौपाल पर हाजिरी लगाई जाएगी!
लेकिन हमेशा की तरह, अपना खुद से किया गया वायदा,देश के साथ इंटायर पॉलिटिकल साइंस की डिग्री धारक के वायदों जैसे हश्र को प्राप्त हो गया।लाल मिर्च से छुकी उड़द की दाल के साथ बाजरे की रोटी खाकर ऐसी नींद आई जैसे अस्तबल का आखिरी घोड़ा बिका हो।
लेकिन सुबह सुबह कमाल हो गया।फोन की घरघराहट के साथ ही नींद खुली!आंखे मलते हुए चश्मा चढ़ाया और स्क्रीन पर नजर डाली तो देखा मुसद्दी भइया याद कर रहे हैं!एकदम नए रंगरूट की तरह अटेंशन में आ गए।फोन पर उंगली सरकाई और पालागन दाग दिया!एक बार नहीं दो तीन बार पालागन कर डाला।
मुसद्दी भइया तो पुराने मास्टर हैं।समझ गए कि हम तोते की तरह पालागन पालागन क्यों रट रहे हैं।उन्होंने हमेशा की तरह जूता पुजने और झंडा बुलंद रहने का आशीर्वाद दिया!फिर बोले तुम्हारी खबर तो तुम्हारी भौजी लेंगी..अभी जरा चौपाल की एक समस्या समझो!हल्के (सूबेदार हाकिम सिंह यादव) और अतरू ( मास्टर अतर सिंह शाक्य) यूक्रेन और रूस हुए जा रहे हैं!न हल्के हल्के पर रहे हैं और न अतरु गोड हिलने दे रहे हैं।मामला अंगद के पांव की तरह जमा हुआ है!और तो और अपने सुकुल दद्दा की पत्तरा भी खेतन मैं उड़ रही है!वे भी इस बार नरभसाए पड़े हैं।अब तुम इनसे बात करो और जा लौंझड़ निपटाओ!
इतना कह कर भइया ने फोन आगे बढ़ा दिया।उधर से जयहिंद जनाब सुनते ही समझ आ गया कि हल्के लाइन पर आ चुके हैं। मैंने भी जयहिंद का नारा दोहराया और पूछ लिया – क्या माजरा है मेजर साहब..आज मास्टर को क्यों टांग लिया है?हल्के जोर से हंसे..फिर सहपाठी रहे अतरु के लिए अपने प्रिय फौजी शब्द का संबोधन दोहराया!रुक कर लंबी सांस ली फिर बोले – मास्टर कहावत बदले दे रहा है!रोज एक ही बात कह रहा है। मैंने उन्हें टोकते हुए पूछा..अरे भाई ये तो बताओ कि कहावत कौन सी है और बदलाव क्या कर दिया मास्टर ने?
हल्के अचानक गंभीर से हुए!कुछ क्षण का पॉज लिया।फिर बोले – आपने गधे को बाप बनाए जाने वाली कहावत सुनी है? मैंने कहां – हां खूब सुनी है।और सुनी ही नहीं उसे चरितार्थ होते हुए भी देखा है!हल्के बोले तो फिर जरा थमो..ये मास्टर रोज कहता है कि रग रग में व्यापार होने की बात करने वाले ने कहावत ही बदल डाली है।अब तक लोग मतलब पड़ने पर गधे को बाप बनाते थे…ये इससे कई कदम आगे बढ़ गया है!
ये लोग मतलब पढ़ने पर गधे को तो बाप बनाते ही हैं मगर मतलब निकल जाने के बाद सगे बाप को गधा बनाने से भी नहीं चूकते हैं! मास्टर कह रहा है कि इनके दांव में फंसा चाहे आदमी हो या फिर कुत्ता… न घर का रह जाता है और न घाट का बचता है!
मास्टर रोज रोज यही रमतुल्ला बजा रहा है।मेरा कहना है भला कहावत भी कहीं बदली जाती है।या फिर कोई बाप को भी गधा बना सकता है।इस सवाल पर मास्टर आडवाणी आडवाणी करने लगता है।कांग्रेसियों के नाम गिनाने लगता है!
मेरा माइंड डिस्टर्ब हो गया है। सुकुल दद्दा,मुसद्दी भइया,अनोखे लेखपाल और दीवान रामलाल सब फेल कर दिए हैं इस मास्टर ने!अब तुम ही इस मसले को सुलझाओ!
मैंने कहा हल्के भाई जरा मास्टर से तो बात करा दो!वे नाखुश हो गए!बोले अब तुम भी जज बन रहे हो?जब हमने सब बात बता दी तो उससे क्या बात करनी?वो फिर वही राग अलापेगा !तुम तो यह बताओ कि क्या कहावत बदली जा सकती है ?क्या कोई आदमी काम हो जाने के बाद बाप को भी गधा बना सकता है?गधे को बाप बनाने की बात चलती है।पर बाप को गधा बनाने की बात कभी सुनी या देखी?
पहले अपनी राय बताओ..उससे फिर बात कर लेना।सोचने के लिए समय चाहिए तो दिया ..दो चार घंटे बाद बता देना…लेकिन मुझे तो जवाब चाहिए!
यह कह कर हल्के ने फोन काट दिया।सवाल सुनने के बाद से हल्के बहुत भारी लग रहे हैं.. और अतरु…वे तो रामलीला के अंगद से भी भारी पड़ते दिखाई दे रहे हैं।
इस मसले का हल तो निकालना है..अब आप ही मदद करो..बताओ..हल्के सही कि अतरु !!!
गधा को बाप बनाते हैं
या फिर अब
बाप को भी गधा बनाते हैं?
अरुण दीक्षित की फेसबुक वाल से साभार।