धीरे-धीरे समाज से तालाबों, पोखरों और कुओं की चर्चा खत्म होने लगी है. हम भूल रहे हैं कि हमारे आसपास कभी बड़े-बड़े तालाब भी हुआ करते थे. 2023 में आया जल शक्ति मंत्रालय का आंकड़ा चौंकाने वाला है. लगभर हर राज्य में तालाब अतिक्रमण का शिकार हुए हैं या फिर देखभाल के अभाव में इस्तेमाल करने लायक नहीं रहे हैं. तालाबों की अनदेखी का नतीजा ये हुआ है कि शहरों में गर्मी आते ही जल संकट शुरू हो जाता है।
हाल ही की दो घटनाओं पर जरूर आपका ध्यान गया होगा, पहली बेंगलुरु में पानी की किल्लत और दूसरी बिहार के दरभंगा जिले से तालाब के चोरी होने की खबर. ये दो अलग-अलग राज्यों से जुड़ी खबरें हैं लेकिन एक-दूसरे से गहरा संबंध रखती हैं. गर्मियों की शुरुआत से ही बेंगलुरु में एक बार ऐसी स्थिति आ गई कि कुछ इलाक़ों में नहाने तक को पर्याप्त पानी नहीं बचा. आईटी हब की चर्चा पानी संकट को लेकर होती रही. दूसरी ओर दरभंगा में एक तालाब रातोंरात चोरी हो गया. यहां रात के वक्त भूमाफियाओं ने मिट्टी भरकर एक तालाब समतल कर दिया और कब्ज़े के इरादे से वहां एक झोपड़ी बना डाली। स्थानीय लोगों ने जब इसकी शिकायत की तब पुलिस ने तालाब वाली जमीन से कब्जा हटवाया. दरअसल, इन दोनों खबरों के केंद्र में तालाब ही है. जल शक्ति मंत्रालय के डेटा के मुताबिक देश में मौजूद वॉटर बॉडीज में सबसे ज्यादा तालाब हैं, जिनका हिस्सा करीब 59.5 फीसदी है यानी आधे से ज्यादा. साफ है कि ये तालाब पानी का बड़ा स्रोत हैं जिनकी अनदेखी हो रही है।
धीरे-धीरे समाज से तालाबों, पोखरों और कुओं की चर्चा खत्म होने लगी है. हम भूल रहे हैं कि हमारे आसपास कभी बड़े-बड़े तालाब भी हुआ करते थे. 2023 में आया जल शक्ति मंत्रालय का आंकड़ा चौंकाने वाला है. लगभर हर राज्य में तालाब अतिक्रमण का शिकार हुए हैं या फिर देखभाल के अभाव में इस्तेमाल करने लायक नहीं रहे हैं. तालाबों की अनदेखी का नतीजा ये हुआ है कि शहरों में गर्मी आते ही जल संकट शुरू हो जाता है.
हाल ही की दो घटनाओं पर जरूर आपका ध्यान गया होगा, पहली बेंगलुरु में पानी की किल्लत और दूसरी बिहार के दरभंगा जिले से तालाब के चोरी होने की खबर. ये दो अलग-अलग राज्यों से जुड़ी खबरें हैं लेकिन एक-दूसरे से गहरा संबंध रखती हैं. गर्मियों की शुरुआत से ही बेंगलुरु में एक बार ऐसी स्थिति आ गई कि कुछ इलाक़ों में नहाने तक को पर्याप्त पानी नहीं बचा. आईटी हब की चर्चा पानी संकट को लेकर होती रही. दूसरी ओर दरभंगा में एक तालाब रातोंरात चोरी हो गया. यहां रात के वक्त भूमाफियाओं ने मिट्टी भरकर एक तालाब समतल कर दिया और कब्ज़े के इरादे से वहां एक झोपड़ी बना डाली. स्थानीय लोगों ने जब इसकी शिकायत की तब पुलिस ने तालाब वाली जमीन से कब्जा हटवाया. दरअसल, इन दोनों खबरों के केंद्र में तालाब ही है. जल शक्ति मंत्रालय के डेटा के मुताबिक देश में मौजूद वॉटर बॉडीज में सबसे ज्यादा तालाब हैं, जिनका हिस्सा करीब 59.5 फीसदी है यानी आधे से ज्यादा. साफ है कि ये तालाब पानी का बड़ा स्रोत हैं जिनकी अनदेखी हो रही है.
क्यों जरूरी हैं तालाब
‘भारत के जलपुरुष’ के नाम से मशहूर जल संरक्षणवादी और पर्यावरणविद् राजेंद्र सिंह कहते हैं कि “भूजल का तालाब से सीधा कनेक्शन है. अभी भी शहरों में भूजल निकालने के लिए बहुत सारे बोरवेल और सबमर्सिबल लगे हैं, उन सबको पानी कहां से मिलता है. उनको पानी मिलता है धरती से और धरती का पेट भरने का काम झीलें और तालाब करते हैं. ये बारिश के पानी को जमा करते हैं, जो धीरे धीरे धरती के पेट में जाता है और भूजल को रीचार्ज करता है. धरती के पेट को पानी से भरने के बाद हम तालाब और कुओं से पानी निकालते हैं, अपनी ज़रूरत पूरी कर लेते हैं. तो शहर हो या गांव सब को जल संरचना चाहिए, सबको तालाब चाहिए, सबको झील चाहिए.”
पौंड मैन के नाम से जाने जाने वाले पर्यावरणविद् रामवीर तंवर कहते हैं कि तालाब पानी की कमी का निदान करने में सक्षम हैं. जल संकट से निपटने के लिए अभी भी तालाब ही सबसे पुराना और सबसे टिकाऊ समाधान हैं और ग्राउंड वॉटर को रीचार्ज करने के लिए भी ये अहम हैं. जिस तरह से बेंगलुरु में वॉटर क्राइसिस देखा जा रहा है, उसके बाद कई सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाएं इसपर रिसर्च कर रही हैं. उसका सीधा कारण ये है कि जो पानी के स्रोत हैं, झीलें हैं, तालाब हैं उनकी जल भंडारण क्षमता 50 फीसदी से भी कम हो गई है. अगर किसी वॉटर बॉडी में पहले 10 करोड़ लीटर पानी आता था तो अब उसमें सिर्फ पांच करोड़ लीटर पानी आ रहा है. ऐसे में बचा हुआ पानी कहां जाएगा, वो बहकर नाले से निकल जाएगा या फिर वो बाढ़ का रूप लेकर हमारी सोसाइटी में आएगा, जैसे दो साल पहले बेंगलुरु में देखा गया. अगर वही बारिश का पानी आप रोक लें, तालाबों को गहरा करके, तो शहरों में बाढ़ भी रुक सकती है.
गर्मी बढ़ने के साथ ही जल संकट भी बढ़ता है क्योंकि तालाबों तक पानी नहीं पहुंच पाता और ग्राउंड वॉटर रीचार्ज नहीं हो पाता. अगर ग्राउंड वॉटर रीचार्ज नहीं हुआ तो फिर हैंडपंप से भी क्या ही निकलेगा. रामवीर कहते हैं कि “पानी की समस्या का तालाब ही समाधान हैं. क्योंकि आप आर्टिफिशियल तरीक़े से सौ, दो सौ लीटर, पांच सौ लीटर पानी रीचार्ज भी कर लेंगे तो पूरे शहर के लिए काफी नहीं है. इसके लिए सबसे नेचुरल, सबसे टिकाऊ, सबसे पुराना तरीक़ा है कि आस-पास के तालाबों को फिर से जिंदा किया जाए.”
पिछले साल अप्रैल में जल शक्ति मंत्रालय ने अपनी पहली ‘जल स्रोत गणना-2023’ जारी की, जिसमें भारत में तालाबों की कुल संख्या को राज्यवार डेटा के साथ बताया गया है. इन आंकड़ों के आंकलन से पता चलता है कि पश्चिमी राज्यों गोवा, गुजरात, महाराष्ट्र के अलावा चंडीगढ़ में तालाबों की गिनती काफी कम रही है. भारत में कुल 14,43,028 तालाब हैं. बिन पानी सब सून
संयुक्त राष्ट्र वर्ल्ड वॉटर डेवलपमेंट रिपोर्ट-2023 के अनुसार – दुनिया भर में करीब तीन अरब लोग पानी की कमी झेलते हैं. यूएन वर्ल्ड वॉटर डेवलपमेंट की ताज़ा रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अगर इस दिशा में अंतरराष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा नहीं दिया गया तो आने वाले दशकों में ये संकट और भी गहराएगा, खास तौर से शहरों में. भारत में शहरों की स्थिति कमोवेश ऐसी ही है. यहां तालाबों की लगातार ‘चोरी’ हो रही है. उनके अतिक्रमण का सिलसिला लगातार जारी है।उनके अतिक्रमण का सिलसिला लगातार जारी है. ब्रिटिश हुकूमत में तालाबों से नहरें निकालकर सिंचाई के लालच ने सबसे पहले तालाबों के नुकसान की शुरुआत की. तालाब आमतौर पर गांव के किनारे होते हैं अतिक्रमण के लालच में उन पर कब्जा हो गया और तालाब अगर शहर में हुआ तो ज़मीन की मंहगी कीमतों की वजह से उसे गायब कर दिया गया.
राजेंद्र सिंह कहते हैं कि “पिछले 10 साल में सरकार की तरफ से कभी अमृत सरोवर तो कभी कुछ और बहुत सी अच्छी योजनाएं पानी पर चली हैं. लेकिन हज़ारों तालाबों पर अतिक्रमण हुआ और 11 हज़ार से ज़्यादा तालाबों पर बिल्डिंग बनकर तैयार हैं. ये हमारी सरकारों की अनदेखी है, यदि हम भारत को पानीदार बनाना चाहते हैं तो पहले परम्परागत जल संसाधनों की तरफ़ ध्यान जाना चाहिए. परम्परागत जल प्रबंधन की व्यवस्था को पुनर्जीवित करना तमाम सरकारों की प्राथमिकता होनी चाहिए और उसके बाद कुछ आगे के काम हो सकते हैं. बजट में हमारी भारत सरकार परम्परागत जल संसाधनों के प्रबंधन पर ख़र्च बढ़ाकर उनको ठीक करवा देती तो भारत का भूजल पुनर्भरण का काम शुरू हो जाता.”
क्या तालाब अनियोजित शहरीकरण का शिकार हुए?
5 राज्य जिनमें सबसे ज्यादा तालाब हैं वो हैं पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, असम, ओडिशा और झारखंड. अधिकतर राज्यों से तालाबों पर अतिक्रमण की घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं. यूपी सरकार ने अगस्त 2023 में एक ऑर्डर जारी किया, जिसमें कहा गया कि तालाब गायब होने वाले मामलों में डीएम सबसे पहले एक्शन लें. 2022 में नोएडा के डीएम ने नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल को दी रिपोर्ट में बताया कि 1018 तालाबों में से 217 तालाबों का अतिक्रमण हुआ. CYCLE फाउंडेशन यानि सेंटर फॉर यूथ कल्चर लॉ एंड एनवायरनमेंट की तरफ से किए गए एक सर्वेक्षण के हिसाब से दिल्ली में कुल 1,001 तालाबों का सर्वेक्षण किया गया. इस सर्वेक्षण में पाया गया कि 302 जल निकायों पर या तो सरकारी एजेंसियों या निजी व्यक्तियों ने अतिक्रमण किया था. दूसरे 100 सीवेज और कचरे से दूषित थे जबकि 345 पूरी तरह से सूखे थे.
ढाई लाख तालाब बेकार
जल शक्ति मंत्रालय की 2023 में जारी सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक देशभर में करीब 11 हजार तालाबों पर किसी न किसी तरह का निर्माण हो चुका है. सर्वे के मुताबिक देशभर में 2,61,916 तालाब अलग-अलग वजहों से इस्तेमाल के लायक नहीं रहे हैं. यह गंभीर स्थिति है. कर्नाटक में करीब 1750 तालाब सूख गए. 265 तालाबों पर निर्माण हो गया. गाद की वजह से 188 वॉटर बॉडीज खराब हुईं. 19 वॉटर बॉडीज की मरम्मत नहीं हुई. इंडस्ट्रीज का असर 23 वॉटर बॉडीज पर पड़ा. इस तरह कुल 6431 तालाबों में 5085 तो इस्तेमाल के लायक ही नहीं हैं. सिर्फ कर्नाटक में ही नहीं कमोबेश पूरे देश भर में हालात कुछ ऐसे ही हैं. देश की राजधानी दिल्ली की ही बात करें तो 2023 में जल शक्ति मंत्रालय की सर्वे रिपोर्ट के हिसाब से 216 वाटर बॉडीज इस्तेमाल के योग्य ही नहीं बची हैं।
सीवेज डालने की जगह बने
बहुत से तालाबों को कूड़ेदान या सीवेज में तब्दील कर दिया जाता है. कई बार लोगों द्वारा तो कई बार पब्लिक डिपार्टमेंट की ओर से ऐसा अतिक्रमण किया जाता है. बहुत सारे तलाब ऐसे हैं जिनका कोई इस्तेमाल इसलिए भी नहीं हो रहा क्योंकि उनको सीवेज से डॉयरेक्ट कनेक्ट कर दिया गया. कई को आस-पास के गंदे नालों में जोड़ दिया गया है. इस कारण वो तालाब भी अब सीवेज के टैंक की तरह काम करते हैं. ऐसा वहां ज़्यादा देखने को मिलता है जहां अनियमित शहरीकरण हुआ है. ऐसी स्थिति में तालाबों में उस क्वालिटी का पानी बचा ही नहीं कि उसका इस्तेमाल किया जा सके.
कैसे बदलेंगे हालात
सबसे पहले तालाबों का डिमार्केशन (सीमांकन) किया जाए. डिमार्केशन करके उनकी बाउंड्री निश्चित की जाए कि इतना बड़ा तालाब है. दूसरा सबसे ज़रूरी होता है उसका ट्रेंचमेंट एरिया यानी जहां-जहां से उसमें बहकर पानी आता है. उसमें हुआ ये है कि बीच में कोई सड़क चली गई, कोई बिल्डिंग बन गई तो पानी का जो बहाव था वह दूसरी तरफ मुड़ गया. अब वो तालाब की तरफ ना आकर दूसरी तरफ़ मुड़ गया. वो सारे वॉटर चैनल जिनसे तालाब में पानी पहुंचता है, हमें उन्हें वापस तालाब के साथ कनेक्ट करना पड़ेगा. उनकी प्रोटेक्शन फेंसिंग बाउंड्रीवाल बनानी होगी ताकि भविष्य में अतिक्रमण रुक सके और पानी तलाब की तरफ़ जा सके.
राजेंद्र सिंह बताते हैं कि “देश में एकदम से पानी की किल्लत दूर हो जाएगी, ये कहना बेमानी होगा. पानी की समस्या का संकट बहुत गहरा है, हम पानी के मामले में ICU में भर्ती हैं. अगर हम ये मानकर काम नहीं करेंगे कि हमारा पानी का संकट भयानक है तो इसका समाधान नहीं खोज पाएंगे. जब तक इसका परमानेंट सॉल्यूशन नहीं होगा तब तक कोई फायदा नहीं है, और परमानेंट सॉल्यूशन है बारिश के पानी को पकड़कर धरती का पेट पानी से भर देना. चाहे वो बेंगलुरु शहर हो या दिल्ली शहर हो या फिर मुंबई शहर, जब तक ये नहीं होगा तब तक हम पानीदार नहीं बन सकते.”
असल में शहरों में तालाबों का जो इस्तेमाल है वो ग्राउंड वॉटर को रीचार्ज करने के लिए बेहद अहम है. लेकिन उसका बड़ा महत्तवपूर्ण इस्तेमाल है बायो डायवर्सिटी को संरक्षित करना, बतखों को घर देना, बहुत सारी ऐसी चिड़ियों को घर देना है जिनको तालाब की ज़रूरत है. आप अगर तालाब को पाट देंगे या कुछ और बना देंगे तो ना तो ग्राउंड वॉटर चार्ज होगा ना वो बायो डायवर्सिटी को सपोर्ट कर पाएगा.