MP : निमाड़ अंचल में ऑर्गेनिक कॉटन उत्पादकों के फर्जी समूह बनाकर करोड़ों का घोटाला..
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पीएम एवं सीएम से सोयाबीन की फसल के दाम 6000 रु. प्रति क्विंटल करने की मांग की
भोपाल। देश में लगभग 50 प्रतिशत से अधिक सोयाबीन मध्यप्रदेश में पैदा की जाती है लेकिन वर्ष 2011 से लेकर आज तक लागत दुगनी तिगुनी हो गई लेकिन सोयाबीन का भाव वहीं का वहीं है 4300 रुपए क्विंटल। 2011 में और अभी उसी के आस – पास है, क्योंकि सोयाबीन की फसल का भाव अंतरराष्ट्रीय सोयाबीन के उत्पादन पर निर्भर करता है और इस साल जो संभावना है वह यही है कि जो अंतर्राष्ट्रीय बाजार में सोयाबीन का भाव इस प्रकार का रहेगा जिसमें जो अभी तक 4000, 4300 बिकता था शायद वह भी ना मिल सके। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने पत्र लिखकर कहा है- मैं अपील करता हूं, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री से अधिकांश हमारे किसान खरीफ में सोयाबीन की फसल लेते हैं और उसके उत्पादन की खरीद सरकार को अवश्य करना चाहिए। उन्होंने लिखा है कि – मैं मांग करता हूं कि इसका न्यूनतम भाव आज की लागत को देखते हुए लगभग 6000 रु. क्विंटल से कम नहीं होना चाहिए। मैं, आपसे मांग करता हूं और यही मध्यप्रदेश के 100 प्रतिशत किसानों की मांग भी है, इस बात पर आप पूरा ध्यान दें।
दिग्विजय सिंह का पत्र
आदरणीय श्री नरेन्द्र मोदी जी
आप इस बात से भली भॉति अवगत है कि भारत दुनिया में जैविक कपास का सबसे बड़ा उत्पादक और निर्यातक देश है। सरकारी ऑकड़ों के मुताबिक दुनिया भर के जैविक कपास के उत्पादन में भारत की भागीदारी 66 प्रतिशत है। उसमें भी मध्यप्रदेश प्रथम स्थान पर है तथा देश में सबसे ज्यादा जैविक भूमि का प्रमाणीकरण भी मध्यप्रदेश में किया गया है।
जैविक उत्पादन के लिए राष्ट्रीय कार्यक्रम के तहत जैविक उत्पादन, प्रणालियों, मानकों और प्रमाणन निकायों के लिए प्रक्रिया तय है जिसे अन्य अंतर्राष्ट्रीय मानकों के साथ सामंजस्य में तैयार गया है। जैविक उत्पादों के आयात और निर्यात को इन्हीं मानकों के द्वारा विनियमित किया जाता है। इसके लिये गाइडलाइन तय है।
किसानों द्वारा उत्पादित आर्गेनिक कॉटन का प्रमाणीकरण सरकारी एजेंसी ्रक्कश्वष्ठ्र द्वारा अधिकृत सर्टिफिकेशन बॉडी द्वारा किया जाता है। देश में ऐसी अनेक सर्टिफिकेशन बॉडीज है जो ऑर्गेनिक उत्पादों को प्रमाणित करती है। मध्यप्रदेश में कंट्रोल यूनियन नाम की एक सर्टिफिकेशन बॉडी को ्रक्कश्वष्ठ्र द्वारा अधिकृत किया गया है। मेरी जानकारी में यह नही है कि इसके अलावा और कितनी सर्टिफिकेशन बॉडीस मध्यप्रदेश और देश में काम कर रही है। ऑर्गेनिक उत्पाद के उत्पादकों के लिये गाइडलाइन के अध्याय 5 के पैरा (5.1), (5.2) एवं (5.3) में आईसीएस बनाने का प्रावधान है। इसी के तहत ऑर्गेनिक कॉटन उत्पादकों के समूह का गठन किया जाता है। इन समूहों में न्यूनतम 25 और अधिकतम 500 किसान हो सकते है।
सरकारी वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी के अनुसार प्रधानमंत्री कृषि विकास योजना के तहत सरकार द्वारा ऑर्गेनिक खेती को बढ़ावा देने के लिये किसान को प्रति हेक्टेयर तीन वर्षों के लिए रू. 50,000 की वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। 16 नवंबर 2022 को इस योजना के तहत 32,384 क्लस्टर्स, कुल 6.4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र और 16.1 लाख किसानों को शामिल किया गया है। वर्ष 2022-23 तक योजना के तहत रू. 1854.01 करोड़ की राशि जारी की गई है।
मुझे यह लिखते हुये खेद है कि मध्यप्रदेश के निमाड़ अंचल में ऑर्गेनिक कॉटन उत्पादकों के फर्जी समूह बनाये गये है तथा इन समूहों में ऐसे गॉवों के किसानों के नाम भी शामिल किये गये है जो न तो ऑर्गेनिक कॉटन का और न ही या साधारण बी.टी. कॉटन का उत्पादन करते हैं और न पहले कभी उन्होंने किया है। धार जिले के भीलकुण्डा और उसके आसपास के गॉवों के किसान इसके ज्वलंत उदाहरण है। ऑर्गेनिक कॉटन उत्पादकों के समूह में इस गॉव और इसके आसपास के अनेक किसानों के नाम फर्जी तरीके से शामिल किये गये है और उन्हें ऑर्गेनिक कॉटन उत्पादक बताकर उनसे कॉटन क्रय करना, दर्शाया गया है। कंट्रोल यूनियन नाम की सर्टिफिकेशन बॉडी द्वारा बगैर भौतिक सत्यापन के एपिडा और व्यापारियों की मिलीभगत से ऑर्गेनिक उत्पादन के सर्टिफिकेट जारी किये गये है जिसका खुलासा एक व्हिसल ब्लोअर द्वारा आयुक्त, वाणिज्यिक कर इन्दौर को की गई शिकायत से होता है। इस शिकायत में करो?ों रूपये की जी.एस.टी. चोरी की बातें भी सामने आई है।
व्यापारियों द्वारा साधारण बीटी कॉटन को बाहर से खरीदकर फर्जी तरीके से किसानों द्वारा उत्पादित ऑर्गेनिक कॉटन बताकर कंट्रोल यूनियन नामक सर्टिफिकेशन बॉडी से सर्टिफिकेट प्राप्त किया जा रहा है और उस कॉटन का विदेशों में निर्यात जा रहा है। ऐसी स्थिति में प्रश्न यह भी उठता है कि जिन किसानों द्वारा जैविक कपास का उत्पादन ही नही किया जा रहा है, उन्हें सरकारी योजना क्क्यङ्कङ्घ के तहत जैविक उत्पादन पर मिलने वाली सहायता कौन ले रहा है तथा यह कितना बड़ा भ्रष्टाचार है?
साधारण कॉटन को ऑर्गेनिक बताकर उसे ऑर्गेनिक सर्टिफिकेट देने के कारण एपीडा द्वारा अधिकृत ‘‘कंट्रोल यूनियन’’ नामक सर्टिफिकेशन बॉडी को यूरोपियन यूनियन द्वारा प्रतिबंधित किया जा चुका है। यह सिर्फ किसानों के साथ धोखा ही नही बल्कि भारत की अंतर्राष्ट्रीय साख का भी सवाल है। अमेरिका के न्यूयॉर्क से प्रकाशित प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय समाचार पत्र ’’द न्यूयॉर्क टाईम्स’’ में 12 अप्रेल 2022 को इस संबन्ध में प्रकाशित खबर में भारत से निर्यात होने वाले पूरे ऑर्गेनिक कॉटन की विश्वसनीयता पर सवाल खड़े किये गये है और इससे भारत की साख को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर धक्का लगा है। यूरोपियन यूनियन द्वारा एपीडा की अधिकृत कंट्रोल यूनियन नामक सर्टिफिकेशन बॉडी को प्रतिबंधित करने की खबर भारत की प्रतिष्ठा को चोट पहुॅचाती है।
यह घोटाला भले ही मध्यप्रदेश से उजागर हुआ हो लेकिन ऐसा लगता है कि इसकी जड़ें पूरे देश में फैली हुई है तथा हो सकता है कि सिर्फ कंट्रोल यूनियन जैसी सर्टिफाइंग बॉडी ही नही बल्कि अन्य सर्टिफाइंग बॉडीज द्वारा भी ऐसा किया जा रहा हो। इस घोटाले में हजारों करोड़ रूपये के फर्जी ऑर्गेनिक कॉटन निर्यात तथा हजारों करोड़ रूपये की फर्जी वित्तीय सहायता प्राप्त करने की आशंकाएं भी प्रबल है। चूॅकि वर्तमान में देश के कृषि मंत्री माननीय श्री शिवराज सिंह चौहान है जो मध्यप्रदेश के लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे है तथा यह मामला मध्यप्रदेश से ही उजागर हुआ है इसलिये कृषि मंत्री और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री होने के नाते इस मामले की जॉच कराने का सरकार का दायित्व और अधिक ब? जाता है।
मेरा आपसे अनुरोध है कि एपीडा द्वारा अधिकृत कंट्रोल यूनियन नामक सर्टिफिकेशन बॉडी सहित देश भर में आर्गेनिक उत्पादों को प्रमाणपत्र देने का काम कर रही सभी सर्टिफिकेशन बॉडीज द्वारा जारी सर्टिफिकेट की निष्पक्ष जॉच करवाये तथा एपीडा एवं कृषि विभाग के जिम्मेदार अधिकारियों सहित जो भी लोग किसानों के नाम पर फर्जी सहायता लेने के इस महाघोटाले में शामिल है उन्हें जॉच उपरान्त तत्काल सलाखों के पीछे करने हेतु कदम उठाने का कष्ट करें ताकि विदेशों में खराब हो रही भारत की साख को बचाया जा सके तथा जनता की गाढ़ी कमाई के हजारों करोड़ रूपयों को भ्रष्टाचार की भेंट चढऩे से रोका जा सके।
सादर।
आपका
(दिग्विजय सिंह)