भोपाल। प्रदेश के नगरीय विकास एवं आवास मंत्री कैलाश विजयवर्गीय बार-बार महाराष्ट्र दौरे पर जा रहे हैं। एक हफ्ते में वे दो बार नागपुर का दौरे कर चुके हैं। इन प्रवासों का सिलसिला आगे और बढ़ेगा।
दरअसल, बीजेपी ने मंत्री कैलाश विजयवर्गीय को नागपुर क्षेत्र की 12 सीटों की जिम्मेदारी सौंपी गई है। इसी सिलसिले में वे नागपुर पहुंचकर वहां स्थानीय जनप्रतिनिधियों, पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं से मेल मुलाकात कर रहे हैं। वे 23 अगस्त और 28 अगस्त को नागपुर में मैराथन बैठकें कर चुके हैं। 28 अगस्त को उन्होंने नागपुर पश्चिम और दक्षिण-पश्चिम विधानसभा क्षेत्र के बीजेपी लीडर्स के साथ बैठकें की। इस दौरान महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फड़णवीस भी मौजूद रहे। जमीनी हकीकत समझने के लिए उन्होंने 29 अगस्त को नागपुर में ही वरिष्ठ पत्रकार विजय दर्डा से मुलाकात की।
बीजेपी के लिए कठिन है महाराष्ट्र की डगर
महाराष्ट्र चुनाव को लेकर वरिष्ठ पत्रकार संदीप सोनवलकर कहते हैं, बीजेपी के लिए महाराष्ट्र की डगर बहुत कठिन है। फूंक-फूंककर कदम रखने की जरूरत है। महाराष्ट्र के लोग कहते हैं कि महाराष्ट्र से राष्ट्र चलता है। इस बार के विधानसभा चुनाव सही मायनों में ऐसे साबित होंगे, क्योंकि ये लोकसभा में बीजेपी को पूर्ण बहुमत नहीं मिलने के बाद होने वाले पहले चुनाव हैं। यहां बीजेपी की साख दाव पर है, क्योंकि यही इकलौता राज्य है, जहां से बीजेपी का उदय वर्ष 1980 में पहली बार हुआ और उसी समय से उसकी सहयोगी रही बाला साहेब ठाकरे की शिवसेना को अब बीजेपी ने छोड़ दिया है।
पांच साल में सबसे ज्यादा राजनीतिक प्रयोग
महाराष्ट्र देश का इकलौता ऐसा राज्य है, जहां पांच वर्षों में सबसे ज्यादा पॉलिटिकल नवाचार हुए हैं। यहीं बीजेपी, शिवसेना का गठबंधन टूटा। फिर अचानक सुबह 5 बजे शपथ हुई। फिर 24 घंटे में सरकार गिर गई। कुछ दिन में एनसीपी कांग्रेस और उद्धव ठाकरे की शिवसेना की सरकार बनी। दो साल बाद शिवसेना में सबसे बड़ी टूट हुई और नई शिवसेना बनी, जिसे धनुष बाण का चुनाव चिह्न मिल गया। शरद पवार की एनसीपी भी टूटी और उनके भतीजे अजित पवार को चाचा का चुनाव चिह्न घड़ी मिल गया।
सीट बंटवारा सबसे बड़ी चुनौती
महाराष्ट्र में बीजेपी के महायुति गठबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती सीटों के बंटवारे की है। 288 सीटों वाली महाराष्ट्र विधानसभा में अब तक बीजेपी और शिवसेना ठाकरे आधी-आधी या कभी-कभी 171 और 121 सीट पर लड़ते रहे हैं। पिछले चुनाव में बीजेपी ने 100 फीसदी का नारा दिया और ठाकरे की शिवसेना को कमजोर किया। उसके बाद उनके रास्ते अलग हो गए। अब बड़ा प्रश्न चिह्न यही है कि महायुति में बंटवारा कैसे हो? बीजेपी के पास अभी खुद के 103 और निर्दलीय 10 मिलाकर 113 विधायक हैं।
बीजेपी कम से कम 180 सीटों पर चुनाव लडऩा चाहती है। ऐसे में उसके दो सहयोगी शिवसेना शिंदे और एनसीपी अजित पवार के हिस्से में कुल बची 100 सीटों में से अधिकतम 50–50 आ सकती हैं, लेकिन शिंदे के पास खुद के 54 विधायक हैं तो अजित पवार के पास 44 विधायक। तीनों पार्टियां उन जगहों को भी चाहती हैं, जहां उनके उम्मीदवार नंबर दो पर थे। अब इसका तोड़ निकालना बीजेपी के लिए कठिन होगा।
स्थानीय गणित क्या कहता है
महाराष्ट्र में विदर्भ, मराठवाड़ा, पश्चिम महाराष्ट्र उत्तर महाराष्ट्र यानी खानदेश और मुंबई सहित कोंकण किनार पटटी पांच प्रमुख क्षेत्र हैं। इन सब इलाकों में लोकसभा चुनाव में बीजेपी को निराशा हाथ लगी, जबकि विदर्भ और उत्तर महाराष्ट्र को बीजेपी का गढ माना जाता है। इसके साथ महाराष्ट्र में 13 बड़े शहर हैं और बीजेपी की इन पर पकड़ रही है, लेकिन इन सबको अब साधना होगा।
मंत्री विजयवर्गीय को नागपुर के आसपास की जिन 13 सीटों का जिम्मा मिला है, वहां भी स्थानीय समीकरण बीजेपी के पक्ष में नजर नहीं आते। क्योंकि यहां लोकसभा चुनाव में विदर्भ की 11 लोकसभा सीटों में से बीजेपी को केवल एक सीट मिल पाई, वो भी इसलिए कि नागपुर से नितिन गडक़री चुनाव मैदान में थे।