ग्वालियर। नगालैंड में मुख्य सचिव रहे वर्ष 1968 बैच के आईएएस अधिकारी सुरेंद्र सिंह अहलूवालिया की बेनामी संपत्तियों में से एक ग्वालियर की प्रॉपर्टी अब भारत सरकार के हवाले की जाएगी।
महारानी रोड पर स्थित यह प्रॉपर्टी उनके भाई इंद्रजीत सिंह के नाम है, जिसके बारे में विशेष अदालत की सुनवाई के दौरान इंद्रजीत ने कहा था कि उनके भाई से उनका कोई लेना-देना नहीं है।
इस वजह से सीबीआई ने विशेष अदालत के हवाले से प्रॉपर्टी भारत सरकार के हवाले करने के लिए ग्वालियर कलेक्टर को लिखा है। जिला प्रशासन के अधिकारियों ने इसकी प्रक्रिया शुरू कर दी है।बता दें कि अहलूवालिया पर भारतीय प्रशासनिक सेवा में नगालैंड और दिल्ली में तैनाती के दौरान बेशुमार बेनामी संपत्ति जुटाने का आरोप लगा था। सीबीआई ने आरोप पत्र में दर्शाया था कि अहलूवालिया ने लोकसेवक के रूप में अपने पद का दुरुपयोग करते हुए दिल्ली, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और मध्य प्रदेश में कई संपत्तियां और भूमि अर्जित कीं।
33 साल चली सुनवाई
तलाशी के दौरान अवैध शस्त्र, गोला-बारूद बरामद होने पर वर्ष 2019 में अहलूवालिया को पांच साल की सजा सुनाई गई थी। वहीं, बेनामी संपत्तियों के मामले में दिल्ली स्थित सीबीआई की विशेष अदालत में 33 साल चली सुनवाई में इसी वर्ष जुलाई में विशेष न्यायालय ने पंजाब के फिरोजपुर निवासी 90 वर्षीय अहलूवालिया को उनकी अधिक उम्र, मानसिक और शारीरिक बीमारी को देखते हुए मुकदमे के लिए अयोग्य करार देते हुए मामला बंद करने के निर्देश दिए थे।
अहलूवालिया के खिलाफ सीबीआई ने आय से अधिक संपत्ति के मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत विभिन्न धाराओं में 1987 में केस दर्ज किया था। मामले में अहलूवालिया के छोटे भाई इंद्रजीत सिंह, कोयंबटूर में बैंक ऑफ बड़ौदा के तत्कालीन वरिष्ठ प्रबंधक वी भास्करन, दीमापुर निवासी न्यामो लोधा भी आरोपित थे। भास्करन व न्यामो की मृत्यु हो चुकी है।
कोर्ट ने की थी टिप्पणी
विशेष अदालत ने लंबी सुनवाई चलने के कारण टिप्पणी की थी कि जब व्यवस्था विफल हो जाती है तो सच्चाई अन्याय की छाया में छिपी रहती है। यह एक क्लासिक उदाहरण है, जिस कारण न्याय न केवल लंबी सुनवाई के कारण बल्कि एजेंसी द्वारा की गई घटिया जांच व लापरवाही के कारण प्रभावित हुआ। पहले ही दिन से एजेंसी का मकसद मामले को तार्किक निष्कर्ष की ओर ले जाने का नहीं था।