महाकुंभ में पहली बार पूर्वोत्तर राज्यों के सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान का प्रदर्शन 

अयोध्या । महाकुंभ 2025 में विशेष रूप से पूर्वोत्तर राज्यों के सांस्कृतिक और धार्मिक योगदान को प्रदर्शित किया। असम की प्रसिद्ध सत्राधिकार परंपरा और नामघर संस्कृति पर आधारित विशेष अनुष्ठान आयोजन का मुख्य आकर्षण रहने वाले है। योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली उत्तर प्रदेश सरकार ने पहली बार पूर्वोत्तर क्षेत्र के 125 संतों को आमंत्रित कर राज्य अतिथि का दर्जा दिया है।
प्रयागराज में 12 जनवरी से शुरू होने वाले महाकुंभ के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए प्राग ज्योतिषपुर क्षेत्र में विशेष रुप से तैयार किया गया हैं। यहां पूर्वोत्तर की संस्कृतियों को प्रदर्शित करने वाला एक भव्य नामघर बनाया गया है, इसमें असम, त्रिपुरा, नागालैंड, मणिपुर जैसे राज्यों की सांस्कृतिक विविधता को प्रदर्शित किया जाएगा। 
सत्राधिकार संतों का शाही स्नान: कुंभ में पहली बार असम के प्राचीन सत्रों, जैसे दक्षिण पद सत्र और गडमूर सत्र, के सत्राधिकारी शाही स्नान में भाग लेने वाले हैं। त्रिपुरा के पद्मश्री प्राप्त चित्ता महाराज और अन्य संत यहां उपस्थित रहने वाले है। वहीं 21 से 27 जनवरी तक सात दिनों में 168 घंटे तक चलने वाली भागवत कथा का आयोजन होगा।
संस्कृति और प्रदर्शन: मणिपुरी नृत्य, सात्रिक नृत्य, नागालैंड का बांस नृत्य और अप्सरा नृत्य जैसे अद्भुत प्रदर्शन किए जाएंगे। पूर्वोत्तर राज्यों की संस्कृति और समाज को दर्शाने वाली प्रदर्शनी 12 जनवरी से शुरू होगी। राम विजय भवन द्वारा रामलीला शैली में एक विशेष प्रदर्शन भी आयोजित होगा।
माटी अखाड़ा और कामाख्या मंदिर: माटी अखाड़े में भक्त अपने योग कौशल का प्रदर्शन करने वाले हैं। इसके अलावा, कामाख्या मंदिर का एक मॉडल बनाया जाएगा, और कामाख्या का पवित्र जल भक्तों को वितरित होगा। 
संतों के लिए विशेष व्यवस्था: उत्तरप्रदेश की योगी सरकार द्वारा पूर्वोत्तर के संतों को भव्य आतिथ्य प्रदान किया जा रहा है। उन्हें प्रयागराज में विशेष खालसा क्षेत्र में ठहराया जाएगा। मुख्यमंत्री कार्यालय से नियमित संवाद और सुविधाओं की देखरेख सुनिश्चित की जा रही है।
महाकुंभ 2025 न केवल भारतीय संस्कृति और परंपराओं का उत्सव होगा, बल्कि पूर्वोत्तर और शेष भारत के बीच सांस्कृतिक सेतु बनाने का एक प्रयास भी है। इस महापर्व में भाग लेने के लिए तीर्थराज प्रयागराज पूरी तरह तैयार है।

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