दावा-मोदी को हटाना चाहता था अमेरिका, दुनियाभर के चुनावों में USAID का दखल
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नई दिल्ली/ वाशिंगटन
अमेरिका के पूर्व विदेश विभाग के अधिकारी माइक बेंज (Mike Benz) ने आरोप लगाया है कि अमेरिका ने भारत के आंतरिक राजनीति में दखल दिया है। इतना ही नहीं अमेरिका ने बांग्लादेश की राजनीति में भी दखल देने की कोशिश की है।उन्होंने दावा किया है कि अमेरिका ने मीडिया प्रभाव, सोशल मीडिया सेंसरशिप और विपक्षी आंदोलनों को वित्तीय सहायता के माध्यम से भारत की राजनीति को प्रभाव डालने की कोशिश की है।
एक दिन पहले भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद निशिकांत दुबे ने अमेरिकी संस्था ‘यूएसएड’ (USAID) द्वारा भारत को विभाजित करने के लिए विभिन्न संस्थाओं को धन दिए जाने का दावा किया था। उन्होंने सोमवार को अपनी सरकार से मांग करते हुए कहा कि इस मामले में जांच कराई जाए और दोषी पाए गए लोगों को जेल में डाला जाए। अब दुबे के दावे को अमेरिका के एक पूर्व अधिकारी के खुलासे से और बल मिलेगा।
दरअसल अमेरिका के पूर्व विदेश विभाग अधिकारी माइक बेंज ने आरोप लगाया है कि अमेरिका ने भारत और बांग्लादेश सहित कई देशों की आंतरिक राजनीति में दखल दिया है। उन्होंने कहा कि अमेरिका ने मीडिया प्रभाव, सोशल मीडिया सेंसरशिप और विपक्षी आंदोलनों को वित्तीय सहायता के माध्यम से इन देशों की राजनीति को प्रभावित किया। बेंज का दावा है कि अमेरिकी सरकार से जुड़ी संस्थाओं ने ‘लोकतंत्र को बढ़ावा देने’ की आड़ में चुनावों को प्रभावित करने, सरकारों को अस्थिर करने और अपने रणनीतिक हितों के अनुरूप विदेशी सरकार बनाने का काम किया।
2019 के भारतीय आम चुनाव में दखल का आरोप
एक रिपोर्ट के मुताबिक, बेंज ने आरोप लगाया कि अमेरिकी विदेश नीति से जुड़े इस कांड में यूएसएड, थिंक टैंक और बड़ी टेक्नोलॉजी कंपनियां शामिल हैं। इन्होंने भारत के 2019 के आम चुनावों को प्रभावित करने का प्रयास किया। उनका कहना है कि इन समूहों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के खिलाफ चुनावी नैरेटिव तैयार किया। उन्होंने कहा कि अमेरिकी संगठनों ने इस धारणा को बढ़ावा दिया कि मोदी की राजनीतिक सफलता गलत सूचनाओं की वजह से है। इसके आधार पर व्यापक सेंसरशिप का वातावरण तैयार किया गया।
सोशल मीडिया पर दबाव का आरोप
बेंज का कहना है कि अमेरिकी विदेश विभाग ने फेसबुक, वॉट्सऐप, यूट्यूब और ट्विटर जैसी बड़ी टेक कंपनियों पर प्रभाव डालते हुए मोदी समर्थक कंटेंट पर अंकुश लगाने का प्रयास किया। वॉट्सऐप की जनवरी 2019 में मैसेज फॉरवर्डिंग की सीमा को कम करने की नीति को भाजपा की डिजिटल पहुंच रोकने का एक सटीक उदाहरण बताया गया। बेंज के अनुसार, अमेरिका समर्थित संस्थाओं ने भारत के डिजिटल स्पेस में हस्तक्षेप को सही ठहराने के लिए मोदी के समर्थकों को ऑनलाइन फर्जी खबरें फैलाने के लिए रणनीतिक रूप से फंसाया।
उनका दावा है कि यूएसएड से जुड़े संगठनों सहित कई अन्य संगठनों ने प्रमुख अंतरराष्ट्रीय मीडिया और डिजिटल फोरेंसिक समूहों के साथ मिलकर ऐसी रिपोर्टें बनाईं, जिनमें भारत को गलत सूचना के गंभीर संकट से जूझते हुए दिखाया गया। उनका तर्क है कि यह सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर मोदी समर्थक बयानों को दबाने का एक बहाना बन गया। बेंज का दावा है कि अमेरिकी विदेश विभाग ने मोदी समर्थक कंटेंट को रोकने के लिए फेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब और ट्विटर जैसी प्रमुख तकनीकी कंपनियों पर दबाव डाला।
‘यूएसएड’ ने संस्थाओं को पैसा दिया- भाजपा सांसद
भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने शून्यकाल में इस मुद्दे को उठाते हुए कहा कि अमेरिका में नए राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने ‘यूएसएड’ संस्था को पूरी तरह बंद कर दिया है क्योंकि यह वर्षों से विभिन्न सरकारों को गिराने के लिए पैसा खर्च कर रही थी। उन्होंने कहा कि विपक्ष को बताना चाहिए, ‘‘क्या यूएसएड ने जॉर्ज सोरोस की ओपन सोसाइटी फाउंडेशन को पांच हजार करोड़ रुपये भारत को विभाजित करने के लिए दिये या नहीं। उसने राजीव गांधी फाउंडेशन को पैसा दिया या नहीं।’’
दुबे ने सवाल उठाया कि क्या ‘यूएसएड’ ने तालिबान को पैसा दिया था? उन्होंने कहा कि इस अमेरिकी संस्था ने आतंकवादी और नक्सलवादी गतिविधिया बढ़ाने वाले कुछ संगठनों को पैसा दिया या नहीं, विपक्ष यह बताए। भाजपा सांसद ने देश में मानवाधिकार के नाम पर और ‘सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च’ के नाम पर विभिन्न संस्थाओं को ‘यूएसएड’ द्वारा पैसा दिए जाने का आरोप लगाते हुए सरकार से अनुरोध किया कि इनकी जांच हो और जिन्होंने देश को नुकसान पहुंचाने के लिए पैसा लिया, उन्हें जेल में डाला जाए।
दुबे के इन आरोपों पर कांग्रेस सदस्यों ने नारेबाजी की। कुछ सदस्य इस संबंध में व्यवस्था का प्रश्न उठाना चाह रहे थे। हालांकि, पीठासीन सभापति संध्या राय ने कहा कि शून्यकाल में व्यवस्था का प्रश्न नहीं होता। भाजपा सांसद दुबे पहले भी सदन में इन मुद्दों को उठाते रहे हैं।
बांग्लादेश में भी अमेरिकी हस्तक्षेप
वहीं बेंज ने दावा किया कि अमेरिका ने बांग्लादेश की राजनीति को भी प्रभावित करने की कोशिश की, खासकर प्रधानमंत्री शेख हसीना की सरकार को कमजोर करने के लिए यूएसएड का इस्तेमाल किया गया। उन्होंने कहा कि यह कदम बांग्लादेश और चीन के बढ़ते आर्थिक और रणनीतिक साझेदारी के कारण उठाया गया। उनके अनुसार, अमेरिकी संगठनों ने सांस्कृतिक और जातीय तनावों का उपयोग करते हुए विभाजन पैदा करने और सरकार विरोधी प्रदर्शनों को बढ़ावा देने की योजना बनाई।
रैप संगीत के जरिए सरकार विरोधी माहौल
एक दिलचस्प आरोप में बेंज ने कहा कि अमेरिकी करदाताओं के पैसे का इस्तेमाल बांग्लादेश में ऐसे रैप संगीत को फंड करने के लिए किया गया, जो सरकार विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देता था। बेंज ने इन गतिविधियों को अमेरिका की वैश्विक रणनीति का हिस्सा बताया। उन्होंने कहा कि इन प्रयासों का उद्देश्य लोकतंत्र को बढ़ावा देना नहीं, बल्कि चीन के प्रभाव का मुकाबला करना, सैन्य ठिकाने सुरक्षित करना और आर्थिक पहुंच बनाए रखना है।
बेंज का कहना है कि ये गतिविधियां अक्सर अमेरिकी प्रशासन की अनुमति के बिना विदेश नीति प्रतिष्ठान के कुछ गुटों द्वारा की जाती हैं। उनके अनुसार, ट्रंप प्रशासन के दौरान भी इन गतिविधियों को अंजाम दिया गया, जबकि ट्रंप और मोदी के बीच अच्छे संबंध थे। बेंज ने अपनी रिसर्च के आधार पर यह दावा किया कि यह सिर्फ भारत और बांग्लादेश तक सीमित नहीं है, बल्कि अमेरिका ने वेनेजुएला, यूक्रेन, मध्य पूर्व और उत्तर अफ्रीका जैसे कई देशों में भी इसी तरह की रणनीति अपनाई।
यूएसएड (USAID) क्या है?
यूएसएड (United States Agency for International Development) यानी संयुक्त राज्य अंतर्राष्ट्रीय विकास एजेंसी अमेरिकी सरकार की एक स्वतंत्र संस्था है जो विकासशील देशों में आर्थिक, सामाजिक और मानवीय सहायता प्रदान करने का कार्य करती है। इसकी स्थापना 1961 में तत्कालीन राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी के कार्यकाल में की गई थी। कहने के लिए यूएसएआईडी का मुख्य उद्देश्य दुनिया भर में गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार, शिक्षा का विस्तार, लोकतंत्र को बढ़ावा देना और मानवीय आपदाओं में सहायता प्रदान करना है।
लेकिन इस पर कई बार आरोप लगे हैं कि यह संगठन राजनीतिक दखल देने और अमेरिकी विदेश नीति के एजेंडे को लागू करने के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है। यूएसएआईडी दुनिया के कई देशों में विभिन्न परियोजनाओं को फंड करता है, जिनका उद्देश्य अमेरिकी रणनीतिक हितों के साथ-साथ संबंधित देश के विकास में योगदान देना होता है। अब ट्रंप इसे बंद करने जा रहे हैं।
कौन हैं माइक बेंज?
बेंज अमेरिकी विदेश विभाग के पूर्व अधिकारी हैं, जिन्होंने 2020 से 2021 तक अंतर्राष्ट्रीय संचार और सूचना प्रौद्योगिकी के लिए उप सहायक सचिव के रूप में कार्य किया। इस भूमिका में, वे साइबर मुद्दों पर अमेरिकी नीति तैयार करने और बिग टेक कंपनियों के साथ मिलकर काम करने के लिए जिम्मेदार थे। अपनी सरकारी सेवा से पहले, उन्होंने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के लिए व्हाइट हाउस के भाषण लेखक के रूप में काम किया, प्रौद्योगिकी मामलों पर सलाह दी और कई वर्षों तक व्यावसायिक कानून की प्रैक्टिस भी की है।
सरकार छोड़ने के बाद, बेंज ने फाउंडेशन फॉर फ्रीडम ऑनलाइन (FFO) की स्थापना की, जो एक गैर-लाभकारी संस्था है जो डिजिटल सेंसरशिप और सरकारों और संगठनों के ऑनलाइन नैटेरिटव के हेरफेर को उजागर करने के लिए समर्पित है। FFO के साथ अपने काम के जरिए, उन्होंने विदेशों में राजनीतिक प्रणालियों को प्रभावित करने में USAID, नेशनल एंडोमेंट फॉर डेमोक्रेसी (NED) और अन्य अमेरिकी समर्थित एजेंसियों की भूमिका की जांच शुरू की। उनकी रिसर्च से उन्हें पता चला कि लोकतंत्र को बढ़ावा देने की आड़ में मीडिया हेरफेर, सोशल मीडिया सेंसरशिप और विपक्षी समूहों को पैसे दिए जा रहे हैं।
Source : Agency