स्त्री 2: यह फिल्म कुछ कहती हैः सरकटे का आतंक..कुछ इस तरह भी समझ सकते हैं…!

प्रकाश कुमार सक्सेना

फिल्म स्त्री सीरीज़ की दूसरी फिल्म “सरकटे का आतंक” सिनेमा हालों में धूम मचाये हुये है। वैसे तो लोग इसमें हॉरर और कॉमेडी को एन्जॉय कर रहे हैं लेकिन मुझे इसमें ढेर सारे पॉलिटिकल सटायर के साथ ही कुछ ऐसा भी लगा मानो यह फिल्म आज के राजनीतिक माहौल पर कुछ कहना चाहती है। आखिर क्या कहना चाहती है? आइये इसके संवादों के साथ ही इसकी कहानी में छिपे संदेश को समझने की कोशिश करें…
इस फिल्म से पहले की फिल्म स्त्री में एक स्त्री का आतंक बताया गया था जो कामुक पुरुषों को उठा ले जाया करती थी। स्त्री एक आत्मा है। उस फिल्म में हीरो राजकुमार राव अंत में उस स्त्री की चोटी काट लेते हैं जिससे उस स्त्री आत्मा की शक्ति समाप्त हो जाती है और वह उस क्षेत्र को छोड़कर चली जाती है।

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स्त्री 2: यह फिल्म कुछ कहती हैः सरकटे का आतंक..कुछ इस तरह भी समझ सकते हैं...! 3

यहां चोटी को चेतना के रूपक के रूप में देखा जा सकता है। ज्योतिष में भी विशेषकर लाल किताब के उपायों में ज्ञान व चेतना के ग्रह गुरू को ठीक करने के उपाय में पुरुषों को भी चोटी रखने की सलाह दी जाती है। अब आते हैं इस फिल्म “स्त्री सरकटे का आतंक” पर। इसमें मध्यप्रदेश का चन्देरी कस्बा दिखाया गया है जिसमें एक सरकटे का आतंक दिखाया गया है। सरकटा वहीं के एक पूर्व प्रधान की आत्मा है जो अपने समय का विलासी पुरुष रहा है। वह स्त्रियों की आधुनिकता के विरुद्ध है। चन्देरी से आधुनिक सोच रखने वाली लड़कियां गायब होने लगती हैं। राजकुमार राव हीरो हैं तथा उनके साथी हैं अपारशक्ति खुराना। खैर, पता चलता है कि सरकटे का सिर इन लड़कियों को उठाकर ले जाता है।
यहां सिर और सरकटा ठीक उसी तरह हैं जैसे राहू और केतु। यानि सिर (गलत) सूचनाओं, खुराफातों, सबकुछ हड़प लेने की प्रवृत्ति वाला राहू है और सरकटा सरविहीन केतु है। इन्हीं रूपकों में इसे देखेंगे तो संदेश की स्पष्टता दिखाई देने लगेगी।

पहले छोटे-छोटे सटायर देखें। पंकज त्रिपाठी पूछते हैं कि ये सरकटे के बारे में क्या जानते हो? तब राजकुमार राव का मित्र जो यू.पी.एस.सी. की तैयारी भी कर रहा है, कहता है-“उसका सिर नहीं है।” पंकज त्रिपाठी कटाक्ष के साथ कहते हैं-“शाबास, तुम्हें अभी आई.ए.एस. बना देते हैं।”
इसी में एक मानसिक रोग चिकित्सालय भी फिल्माया गया है, जहां एक मानसिक रोगी के रूप में अक्षय कुमार की एन्ट्री होती है। जो सरकटे का वंशज है तथा खुदको शाहजहां समझता है। तो यह शाहजहां अपने मंत्री से पूछता है कि ताजमहल के निर्माण की क्या स्थिति है? मंत्री बताता है कि पत्थरों की थोड़ी दिक्कत आ रही है। खर्चा बहुत हो गया है। फिर धीरे से कहता है कि इससे तो अच्छा होता कि शौचालय बनवा देते। तब शाहजहां भड़कते हैं कि..तो क्या लोग मेरे प्रेम के स्मारक पर मूतने आते? आप समझ ही गये होंगे कटाक्ष को रूपकों द्वारा? ऐसे कई कटाक्ष हैं।

अब आते हैं मूल संदेश पर। वैसे तो सरकटे को अपना सिर अपने हाथ में पकड़े हुये दिखाया गया है लेकिन सिर अकेला खौफ मचाये हुये है। वह हवा में दौड़ता-भागता है। अपनी जटाओं से लड़कियों को जकड़कर उठाकर अपने अड्डे पर ले जाकर उनके सिर से चोटी (चेतना) अलगकर उन्हें गंजा करके बंदी बनाकर रखता है। जब गांव वालों को पता चलता है तो वे इकट्ठा होते हैं और कहते हैं कि यदि इसे समाप्त नहीं किया गया तो यह हम सभी को दो सौ साल पीछे ले जायेगा। लेकिन समस्या यह है कि आखिर उससे निपटा कैसे जाये? तो उस गांव का रक्षक है राजकुमार राव जो पहले स्त्री से लोगों को बचा चुका है। सभी की उम्मीद उसी से है जो उस स्त्री (श्रद्धा कपूर) को अब भी बहुत चाहता है। उसे उम्मीद है कि वह वापिस आयेगी। और वह वापिस आती भी है अपनी ताकतवर मायावी चोटी के साथ और इसी चोटी के प्रहार से वह इन सभी को सरकटे से बचाने में कामयाब भी होती है लेकिन सरकटा ज्यादा ताकतवर है। कहानी लम्बी है। सरकटे की ताकत और प्रभाव से राजकुमार राव के मित्र अपारशक्ति खुराना की नज़रों में बदलाव दिखाई देता है और सब समझ जाते हैं कि अब ये अपना नहीं रहा,सरकटे के पक्ष में हो गया है। उसके साथ ही पूरा गांव अब सरकटे के पक्ष में आ चुका है। जो पहले यह कहते थे कि यदि सरकटे से अभी नहीं निपटा गया तो यह हमें दो सौ साल पीछे ले जायेगा, उन्हीं लोगों को सरकटे में अपनी संस्कृति का रक्षक दिखाई देने लगता है। वे मानने लगते हैं कि सरकटा महिलाओं को अपनी संस्कृति के अनुसार रहने के लिये ही तो बाध्य कर रहा है। इस प्रकार वह हमारी संस्कृति ही तो बचा रहा है? हम सबको उसका साथ देना चाहिये। और वे अपने-अपने घरों में स्त्रियों को बन्दकर बाहर से सांकल चढ़ाकर सरकटे का साथ देने निकल पड़ते हैं। अब गांव को सरकटे से मुक्ति दिलाने की इच्छा रखने वाले राजकुमार राव, पंकज त्रिपाठी, वही यू.पी.एस.सी. एस्पेरेंट मित्र और श्रद्धा कपूर ही बचे रह जाते हैं।

सरकटे का सिर भयावह है, वह भय पैदा करता है। भय का मनोविज्ञान लोगों को डराता है। तो लोग उसी में आश्रय व संस्कृति की सुरक्षा देखने लगते हैं। सिर सूचनाओं-मिथ्या सूचनाओं का प्रतीक भी है। स्त्री (श्रद्धा कपूर) राजकुमार राव को एक कटार देकर उस सिर पर प्रहार करने को कहती है। स्त्री अपनी चोटी से भी प्रहार कर उसके टुकड़े करती है। लेकिन जितने सिर के टुकड़े होते जाते हैं उतने ही और सिर बन जाते हैं। बिल्कुल रक्तबीज की तरह। वैसे ही फैलते हैं जैसे आई.टी. सेल की गलत सूचनाएं (मिस इन्फर्मेशन)।
तो फिर कैसे निपटा जा सकता है इनसे? समाधान भी शायद रक्तबीज की कथा से ही तलाशा गया है। इस बीच भेड़िये (वरुण धवन) की एन्ट्री होती है और वह एक-एक कर सारे सिरों को चबाचबाकर निगल जाता है, ठीक वैसे ही जैसे माँ चामुंडा सारे रक्तबीजों को चबाचबाकर निगल जाती हैं।
अन्त में स्त्री अपनी माँ को याद करती है और फिर आती है घूंघट वाली स्त्री की माँ और फिर सरकटे को वही काटती है और नीचे दहकते लावे में एक एक टुकड़े को फेंककर सरकटे और उसके आतंक को समाप्त करती है वो व हीरो राजकुमार राव। अर्थात् चोटी यानि चेतना की वापसी होती है स्त्री के साथ और मनोवैज्ञानिक तरीके से फैलाये भय और आतंक का अन्त होता है।

सारे गांव की स्त्रियां भी दरवाजों की बन्दिशों को तोड़कर बाहर निकलकर सरकटे से भिड़ने निकल आती हैं। गांव वाले जो सरकटे की माया के चलते उसमें संस्कृति की सुरक्षा देखने लगते हैं, उनकी चेतना की भी वापसी हो जाती है। वे भी तय कर लेते हैं कि भय से दो सौ साल पीछे जाने की बजाय तरक्की के रास्ते पर बढ़ा जाये।
यह फिल्म संदेश देती है कि झूठ-फरेब, मायावी व मनोवैज्ञानिक तरीके से मिथ्या सूचनाओं द्वारा रचे भय से चैतन्यता की ओर बढ़ें। मिथ्या सूचनाओं का सामनाकर उन्हें वहीं निगलकर समाप्त कर इससे उत्पन्न भय को समाप्त किया जाये तथा सही सूचनाओं को परखकर उन्नति की राह को चुना जाए। ऐसे सरकटे सिरफिरे बारबार अपने आतंक का राज्य स्थापित करने का प्रयास करेंगे लेकिन चेतना की वापसी कर इस साम्राज्य का अन्त किया जा सकता है। विशेषकर स्त्रियों की चेतना की वापसी आवश्यक है। वैसे सरकटा को भी एक रूपक की तरह लेकर आप अपने अनुसार चिन्तन कर सकते हैं। यह आप पर निर्भर है कि आप सरकटे की तुलना किससे करते हैं?

मध्य वार्ता से साभार

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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