Bhopal को शहर-ए-गजल कहिए, यहां हर रंग में शायरी मिलेगी…

अलीम बजमी
भोपाल। उर्दू अदब में भोपाल की पहचान शहर-ए-गजल की है। शायरों, अदीबों के कलाम ने भोपाल को अदबी नक्शे में पहचान दी है। हरेक दौर में बहुत कुछ अच्छा लिखा गया। ये कलाम अलग-अलग रंग को समेटे हैं। यहां की जुबान की मिठास का अहसास शायरी में भी है। यहां इश्क, मोहब्बत, हुस्न, माशूक की बेवफाई, सनम की जुल्फें, बेरुखी जैसे मौजूं पर बहुत कुछ गढ़ा मिलेगा। साथ ही इंकलाबी शायरी को भी मुकाम मिला तो रुमानी कलाम को भी खूब सराहा गया।
मसनवीं शायरी (सरलता से वर्णन) को भी मुकाम मिला। दरअसल मसनवीं शायरी ने भी लोगों के दिल में जगह बनाई। ऐसे कई नामवर शायर भोपाल में हुए, जिनके कलाम लोगों की जुबां पर है। इनमें बड़ा नाम सिराज मीर खां सहर का है। उनकी पहचान उर्दू अदब के विद्वान के रूप में रही। वहीं, सुहा मुजहद्दी के कलाम को काफी शोहरत मिली। अब ये भी जान लीजिए कि मकबूल शायर मिर्जा असद उल्लाह बेग यानी मिर्जा गालिब को गुजर-बसर के लिए भोपाल रियासत से वजीफा भी मिलता था। शायद ये राशि पांच सौ रुपए माहवार थीं।
करीब 90 साल पहले भोपाल में ही जिगर मुरादाबादी ने भी काफी वक्त गुजारा। शायर अल्लाहमा इकबाल ने भी भोपाल में रहते हुए काफी कुछ लिखा। ये दोनों यहां की दिलकश वादियां, रुमानी अहसास कराने वाली फिजा और सांझी संस्कृति से काफी प्रभावित रहे। इसके चलते दोनों ने यहां लंबा वक्त गुजारा।अब बात भोपाल के खाटी शायरों की। चुनिंदा शायरों के व्यक्तित्व एवं कृतित्व से संक्षेप में आपका परिचय, उनके लोकप्रिय शेर के साथ कराते हैं।
बासित भोपाली। वे मूलत: इश्किया जज्बात को अपनी शायरी में शक्ल देते थे। कई सियासी नज्में भी लिखीं। उनकी शायरी में तंज शामिल रहा। सामाजिक मसले-मसाइल पर भी खूब लिखा। जिदंगी के उतार-चढ़ाव,  इंसानी बेचारगी भी उनकी शायरी का हिस्सा रही। उनका एक मशहूर शेर है…
सारा आलम आइना बासित,
जैसी निगाहें वैसे नज़ारे
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शैरी भोपाली (मोहम्मद असगर खां) भोपाल के ऐसे शायर थे, जिनके कलाम ने देश-दुनिया में धूम मचा रखीं है। साफगोई पसंद,सादा तबीयत, दिलकश तरन्नुम में कलाम कहने का उनका फन अनूठा था। उनका एक शेर…
मोहब्बत मानी-ओ-अल्फ़ाज़ में लाई नहीं जाती
ये वो नाज़ुक हक़ीकत है जो समझाई नहीं जाती
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कैफ भोपाली (ख़्वाजा मोहम्मद इदरीस)यानी सूफी शख्स। दरवेश मिजाज लेकिन शायरी अलहदा। मुशायरों के सबसे मकबूल शायरों में उनका शुमार किया जाता है। उन्होंने कमाल अमरोही की फिल्मों के लिए गीत भी लिखे। खास तौर पर पाकीजा फिल्म के इनके लिखे गीतों को काफी लोकप्रियता मिली।  उनका एक शेर है…
आग का क्या है, पल दो पल में लगती है
बुझते- बुझते, एक ज़माना लगता है
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ताज भोपाली (मोहम्मद अली ताज) इंकलाबी शायरी करते थे। कभी अपनी मोहब्बत से, कभी अपनी शायरी से और कभी-कभी अपनी बातों से लोगों को सोचने पर मजबूर कर देते। फक़ीराना मिजाज से उन्हें इस कदर आशनाई थीं कि मुंबई फिल्म इंडस्ट्रीज को ठुकरा कर भोपाल चले आए। वहां उनके कद्रदानों की लंबी फेहरिस्त रही। उनकी बानगी एक शेर में नजर आती है….
पीछे बंधे हैं हाथ, मगर शर्त है सफर
किससे कहें कि पांव के कांटे निकाल दे
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असद भोपाली (असद उल्लाह खान) की पहचान एक नगमानिगार के तौर पर बनी। कई फ़िल्मों को सुपरहिट गीत दिए। इसके इतर कई ग़ज़लें भी लिखीं। वे ऐसे शायर थे, अंग्रेजी दौर में इंकलाबी कलाम लिखने पर उन्हें जेल की सजा काटनी पड़ी। उनका एक शेर है।
तुम दूर हो तो प्यार का मौसम न आएगा
अब के बरस बहार का मौसम न आएगा
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दुष्यंत कुमार त्यागी का जिक्र किए बगैर हिंदी गजल की बात अधूरी है। आजादी मिलने के बाद सिस्टम में पनपे भ्रष्टाचार के खिलाफ वे आवाज बने।  भूख, ग़रीबी, बेकारी, बेबसी, जुल्म, ज्यादती, नाइंसाफी पर उनकी कलम आतिशी लहजे में चली। उन्हें काफी मकबूलियत भी मिली। हिंदी गजल के साथ उन्होंने कई गीत भी लिखे। उनका एक शेर…
कहां तो तय था चिराग़ा हरेक घर के लिए
कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए।
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डॉ. बशीर बद्र आम आदमी के शायर हैं। कामयाबी की बुलंदियों को फतेह कर लोगों के दिलों की धड़कन में अपनी शायरी को उतारा है।उर्दू ग़ज़ल को एक नया लहजा दिया। ज़िंदगी की आम बातों को बेहद ख़ूबसूरती और सलीके से अपनी ग़ज़लों में कहना उनका फन है। उनका शेर है…
मोहब्बतों में दिखावे की दोस्ती न मिला
अगर गले नहीं मिलता तो हाथ भी न मिला
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मंजर भोपाली (सैयद अली रजा) भी अलहदा लहजे के शायर है। वे देश-दुनिया में मकबूल है।अपनी किशोरावस्था के दौरान, मंज़र ने शायरी में रुचि लेना शुरू कर दिया। 17 साल की उम्र में अपने पहले मुशायरे में भाग लिया। 3 दशकों के दौरान, उन्होंने हिंदी और उर्दू में एक दर्जन से अधिक किताबें लिखी हैं। उनका शेर है…
कह दो मीर गालिब से, हम भी शेर कहते हैं
वो सदी तुम्हारी थीं, ये सदी हमारी है
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खुशी की बात ये हैं कि इन दिनों उर्दू अदब में परवीन कैफ, जफर सेहबाई, जिया फारुखी, अंजुम बाराबंकी, नवेद मलिक, आरिफ अली आरिफ, बद्र वास्ती,  साजिद रिजवी सरीखे शायर उर्दू अदब की मशाल को जला रहे हैं।
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अलीम बजमी दैनिक भास्कर भोपाल की फेसबुक वाल से साभार

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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