Editorial: मामला बहुत गंभीर है..

चर्चित कारोबारी गौतम अडाणी फिर चर्चाओं में हैं। उन पर अमेरिकी निवेशकों के पैसों से भारत में 2,200 करोड़ रुपए घूस देने के आरोप लगे हैं और फेडरल कोर्ट में केस दर्ज हो गया है। इससे अडाणी समूह की मुश्किल में आ गया है। अब तो सेबी ने भी समूह से स्पष्टीकरण भी मांग लिया है। सेबी जांच कर रहा है कि क्या समूह ने बाजार को प्रभावित करने वाली जानकारी का खुलासा करने के नियमों का उल्लंघन किया है? सेबी ने केन्या में एयरपोर्ट विस्तार की डील रद्द किए जाने और अमेरिका में अभियोजन को लेकर जवाब तलब किया है। हालांकि अडाणी समूह ने अभी जवाब नहीं दिया है।
दो दिन से अमेरिकी कोर्ट की खबरें चल रही थीं, अब सेबी ने स्टॉक एक्सचेंज के अधिकारियों से जानकारी मांगी है कि क्या अडाणी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड घूसखोरी के आरोपों में अमेरिकी न्याय विभाग की जांच का पर्याप्त तरीके से खुलासा करने में असफल रही। तथ्यों की जांच दो हफ्ते चल सकती है। इसके बाद सेबी यह तय करेगा कि औपचारिक जांच शुरू करे या नहीं।
सेबी हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों में भी अडाणी समूह की जांच कर चुका है, परंतु उसने अभी तक इसके निष्कर्षों का खुलासा नहीं किया है। इस बीच, अमेरिका का मामला सामने आ गया। इधर व्हाइट हाउस की प्रवक्ता कराइन जीन-पियरे का कहना है कि अडाणी के खिलाफ आरोप से सरकार वाकिफ है। जहां तक बात भारत व अमेरिका के संबंधों की है, तो दोनों देशों के संबंध मजबूत हैं और इन पर कोई फर्क नहीं पडऩे वाला।
सही बात तो यह है कि अमेरिका में अभियोजन कार्रवाई शुरू होने से अदाणी समूह को फंडिंग की कमी का सामना करना पड़ सकता है। क्रेडिट एनालिस्ट्स का कहना है कि कुछ बैंक अदाणी ग्रुप को नए कर्ज देने पर अस्थायी रोक लगाने पर विचार कर रहे हैं। हालांकि समूह के मौजूदा कर्ज बरकरार रखेंगे। रिसर्च फर्म क्रेडिटसाइट्स ने निकट अवधि की चिंता जताई है। उसने कहा कि समूह के ग्रीन एनर्जी कारोबार के लिए रीफाइनेंसिंग सबसे बड़ी चिंता है। वहीं रेटिंग एजेंसी एसएंडपी ने चेताया है कि समूह को इक्विटी और ऋण बाजारों तक नियमित पहुंच की जरूरत होगी, लेकिन इसे कम खरीदार मिल सकते हैं। घरेलू, अंतरराष्ट्रीय बैंक और बॉन्ड निवेशक अपना निवेश सीमित कर सकते हैं।
बाजार की बात करें तो शुक्रवार को अदाणी पोर्ट्स और स्पेशल इकोनॉमिक जोन के 2029 वाले बॉन्ड की कीमत 2.5 डॉलर घटकर 87.8 डॉलर पर आ गई। दो दिनों में यह 5 डॉलर से अधिक गिरा है। वहीं, लंबे समय के मैच्योरिटी वाले बॉन्ड्स दो दिनों में 5 डॉलर गिरकर 80 सेंट से नीचे आ गए। ऐसे में यह मामला अडाणी तक सीमित नहीं रह सकता।
इस मामले से केवल अडाणी समूह या उसके निवेशकों-शेयर धारकों पर ही असर नहीं पड़ रहा है, अपितु इससे भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र और अंतरराष्ट्रीय निवेश पर व्यापक असर पडऩे की आशंका है। विश्लेषकों का कहना है कि विवाद के कारण भारत के नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय निवेश कम हो सकता है। निवेशक अधिक पारदर्शिता और जांच की मांग कर सकते हैं, जिससे प्रोजेक्ट फाइनेंसिंग धीमी हो सकती है।
दूसरी तरफ, अमेरिका सिक्योरिटी एंड एक्सचेंज के प्रवर्तन विभाग के एक्टिंग डायरेक्टर संजय वाधवा का कहना है कि अमेरिका के प्रतिभूति कानूनों का उल्लंघन होगा तो हम सख्ती से कार्रवाई करना और उन्हें जवाबदेह ठहराना जारी रखेंगे। शेयर बाजार की बात करें तो अमेरिकी कोर्ट के आदेश के बाद अडानी की कुछ कंपनियों के शेयरों में लोअर सर्किट भी लग गया था। उनकी कंपनियों का मार्केट कैप 2 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा गिर गया था। इस कारण अडानी की नेटवर्थ में भी कमी आई है। हालांकि बाजार गिर कर फिर से सम्हल गया है, लेकिन अडाणी के शेयर फिलहाल नीचे जाते दिख रहे हैं।
फोब्र्स ने अडानी की संपत्ति में एक दिन में 17.34 प्रतिशत की गिरावट आने का दावा किया है। यानी अडानी की संपत्ति एक दिन में करीब 12.1 बिलियन डॉलर गिरकर 57.7 बिलियन डॉलर रह गई है। संपत्ति में गिरावट के कारण फोब्र्स की बिलेनियर्स की सूची में अडानी कई पायदान नीचे खिसक गए हैं। अडानी फोब्र्स की रियल टाइम बिलेनियर्स लिस्ट में 22वें स्थान से खिसककर 25वें स्थान पर आ गए हैं।
मामला सामने आने के बाद अडाणी ग्रुप ने सफाई दी है और अडानी ग्रीन के निदेशकों के खिलाफ अमेरिकी न्याय विभाग और अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग की ओर से लगाए गए रिश्वत के आरोपों को निराधार बताते हुए उनका खंडन किया है। समूह का कहना है कि जब तक दोष साबित नहीं हो जाते, तब तक प्रतिवादियों को निर्दोष माना जाता है। संभव कानूनी उपाय भी कर रहा है। लेकिन अमेरिका के कानूनों की बात करें तो वहां हमारे देश की तरह कानूनों में बहुत उलझाव नहीं है। सपाट हैं और राष्ट्रपति तक इसके दायरे में आ जाते हैं। बहुत सख्त कानून हैं और अदालतों में भी सीधे-सीधे काम होता है।
कुल मिलाकर मामला गंभीर है और यह केवल अडाणी समूह तक ही सिमटा हुआ नहीं है। भारत में यह मामला सामने आता तो उसे सामान्य मान लिया जाता, क्योंकि यहां रिश्वत सामान्य बात है। हर दूसरे-तीसरे मामले में रिश्वत दी या ली जाती है। सरकारी काम बिना रिश्वत के नहीं होते, ऐसा माना जाता है। लेकिन यह मामला अमेरिका का है। इसे सामान्य तौर पर नहीं लिया जा सकता। वहां सीधे सजा का प्रावधान है। यह अच्छी बात है कि इससे भारत-अमेरिका के संबंधों पर असर नहीं पड़ेगा, लेकिन हमारे यहां के कारोबारियों को इस मामले से सबक लेने की जरूरत तो है। और न्याय प्रणाली को भी।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

Related Articles