Editorial: यथार्थ भारत रतन…अलविदा….

वो वास्तव में असली रतन थे। भारत रतन। असली रत्न की पहचान सिर्फ उसकी कीमत और चमक से होती है, लेकिन अगर किसी शख्सियत में रत्न छिपा हो तो उसकी पहचान करने के लिए उसके मोल और चमक को नहीं देखा जाता है। भारत के महान उद्योगपति रतन टाटा एक ऐसा व्यक्तित्व थे, जिसने संघर्ष और सफलताओं का एक पन्ना नहीं लिखा, पूरा इतिहास ही रच दिया। इस रत्न का मोल आने वाली पीढिय़ां सदियों तक याद रखेंगी। उद्योगपति के बजाय वह  सामाजिक कायकर्ता के रूप में अपनी पहचान बनाने पर अधिक जोर देते रहे और उन्होंने देश और समाज के लिए जो किया, वह बिरले ही कर पाते हैं।
अस्पताल में भर्ती हुए, तो अपने प्रशंसकों से कहा-मैं बिल्कुल ठीक हूं, चिंता की कोई बात नहीं है। और तीसरे ही दिन वह चल बसे। 86 साल की उम्र में अंतिम सांस लेने वाले रतन टाटा का दिल आखिरी समय तक कुत्तों के लिए धडक़ता रहा। जिन सडक़ पर घूमने वाले आवारा कुत्तों को लोग हीन भावना की नजर से देखते है या इग्नोर करते है, उन कुत्तों के लिए रतन टाटा किसी भगवान से कम नहीं थे। यहां तक की उनके ताज होटल के दरवाजे भी कुत्तों के लिए हमेशा खुले रहते थे।
28 दिसंबर 1937 को नवल और सूनू टाटा के घर जन्मे रतन टाटा समूह के फाउंडर जमशेदजी टाटा के परपोते थे। वे पारसी धर्म से हैं। उनके माता पिता बचपन में ही अलग हो गए थे और दादी ने उनकी परवरिश की थी। 1991 में उन्हें टाटा ग्रुप का चेयरमैन बनाया गया था। रतन टाटा की चार बार शादी होते-होते रह गई। टाटा बताते हैं कि एक बार तो शादी हो ही गई होती, जब वो यूएस में थे। पर, उनकी दादी ने उन्हें अचानक फोन करके बुला लिया और उसी समय भारत का चीन से युद्ध छिड़ गया। वे यहीं अटक गए और उस लडक़ी की शादी कहीं और हो गई।
रतन टाटा बुक लवर थे। उन्हें सक्सेस स्टोरीज पढऩा बहुत पसंद था। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि रिटायरमेंट के बाद अब वे अपने इस शौक को समय दे रहे हैं। टाटा को बचपन से ही कम बातचीत पसंद थी। वे केवल औपचारिक और जरूरी बात ही करते थे। वे 60-70 के दशक के गाने सुनना पसंद करते थे। वे कहते थे मुझे बड़ी संतुष्टि होगी अगर मैं शास्त्रीय संगीत बजा पाऊं। मुझे शॉपेन पसंद है। सिम्फनी भी अच्छी लगती है। बिथोवन, चेकोस्की पसंद हैं। पर मुझे लगता है कि काश मैं खुद इन्हें पियानो पर बजा सकूं।
कारों के बारे में पूछने पर टाटा ने बताया था कि मुझे कारों से बहुत लगाव है। उन्होंने कहा था मुझे पुरानी और नई दोनों तरह की कारों का शौक है। खासतौर पर उनकी स्टाइलिंग और उनके मैकेनिज्म के प्रति गहरा रुझान है। इसलिए मैं उन्हें खरीदता हूं, ताकि उन्हें पढ़ सकूं। 1962 में फैमिली बिजनेस जॉइन किया था। शुरुआत में उन्होंने टाटा स्टील के शॉप फ्लोर पर काम किया। इसके बाद वे मैनेजमेंट पोजीशन्स पर लगातार आगे बढ़े। 1991 में, जे.आर.डी. टाटा ने पद छोड़ दिया और ग्रुप की कमान रतन टाटा को मिली।
2012 में 75 वर्ष के होने पर, टाटा ने एग्जीक्यूटिव फंक्शन छोड़ दिए। उनके 21 वर्षों के दौरान, टाटा ग्रुप का मुनाफा 50 गुना बढ़ गया। इसमें अधिकांश रेवेन्यू जगुआर-लैंडरोवर व्हीकल्स और टेटली जैसे पॉपुलर टाटा उत्पादों की विदेशों में बिक्री से आया। चेयरमैन का पद छोडऩे के बाद उन्होंने 44 साल के साइरस मिस्त्री को उत्तराधिकारी नियुक्त किया। उनका परिवार ग्रुप में सबसे बड़ा इंडिविजुअल शेयरहोल्डर था। हालांकि, अगले कुछ वर्षों में, मिस्त्री और टाटा के बीच तनाव बढ़ गया। अक्टूबर 2016 में, चार साल से भी कम समय के बाद, मिस्त्री को रतन टाटा के पूर्ण समर्थन के साथ टाटा के बोर्ड से बाहर कर दिया गया। फरवरी 2017 में नए उत्तराधिकारी का नाम घोषित होने तक टाटा ने चेयरमैन के रूप में अपना पद वापस ले लिया।
रतन टाटा, ग्रुप की परोपकारी शाखा, टाटा ट्रस्ट में गहराई से शामिल थे। टाटा ग्रुप की यह आर्म शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और ग्रामीण विकास जैसे सेक्टर्स में काम करती है। अपने पूरे करियर के दौरान, रतन टाटा ने यह तय किया कि टाटा संस के डिविडेंड का 60-65त्न चैरिटेबल कॉज के लिए इस्तेमाल हो। रतन टाटा ने कोविड-19 महामारी से लडऩे के लिए 500 करोड़ रुपए का दान दिया था। रतन टाटा ने एक एग्जीक्यूटिव सेंटर की स्थापना के लिए हार्वर्ड बिजनेस स्कूल को 50 मिलियन डॉलर का दान दिया था। वे यहीं से पढ़े थे। उनके योगदान ने उन्हें विश्व स्तर पर सम्मान दिलाया, एक परोपकारी और दूरदर्शी के रूप में उनकी विरासत को और बढ़ाया है।
टाटा ग्रुप की स्थापना जमशेदजी टाटा ने 1868 में की थी। यह भारत की सबसे बड़ी मल्टीनेशनल कंपनी है, इसकी 30 कंपनियां दुनिया के 100 से ज्यादा देशों में 10 अलग-अलग बिजनेस में कारोबार करती हैं। अभी एन चंद्रशेखरन इसके चेयरमैन हैं। टाटा संस टाटा कंपनियों की प्रिंसिपल इन्वेस्टमेंट होल्डिंग और प्रमोटर है। टाटा संस की 66 प्रतिशत इक्विटी शेयर कैपिटल उसके चैरिटेबल ट्रस्ट के पास हैं, जो एजुकेशन, हेल्थ, आर्ट एंड कल्चर और लाइवलीहुड जनरेशन के लिए काम करता है।
2023-24 में टाटा ग्रुप की सभी कंपनियों का टोटल रेवेन्यू 13.86 लाख करोड़ रुपए था। यह 10 लाख से ज्यादा लोगों को रोजगार देती है। इसके प्रोडक्ट्स सुबह से शाम तक हमारी जिंदगी में शामिल हैं। सुबह उठकर टाटा चाय पीने से लेकर टेलीविजन पर टाटा बिंज सर्विस का इस्तेमाल, और टाटा स्टील से बने अनगिनत उत्पादों का इस्तेमाल करते हैं।
जितना लिखा जाए, उतना ही कम पड़ेगा। व्यापार से अलग हटकर रतन टाटा बहुत सादगी पसंद व्यक्ति रहे हैं और समाज सेवा में उनका कोई जवाब नहीं रहा। जितनी चिंता अपने व्यापार की करते थे, उससे अधिक समाज की। बहुत बड़े दिल वाले रतन टाटा वास्तव में इस देश के अनमोल रत्न ही थे। संघर्ष और सफलता की जीती जागती मिसाल थे। एक इनसाइक्लोपीडिया थे रतन टाटा। ऐसे विराट व्यक्तित्व को साष्टांग प्रणाम।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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