Editorial: सेबी प्रमुख पर आरोप.. जांच जरूरी…

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड यासंपादकीयनि सेबी की प्रमुख माधबी पुरी बुच इन दिनों विवाद में फंस गई हैं। उन पर लगे रहे आरोपों का सिलसिला जैसे थमने का नाम नहीं ले रहा। हालांकि ये सब अभी तक आरोप ही हैं, जो साबित नहीं हुए हैं, लेकिन इसके बावजूद इनसे संदेह का माहौल बन रहा है, जो कहीं से उचित नहीं जान पड़ता। भारत आज दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था है और यहां का शेयर बाजार भी दुनिया के शीर्ष बाजारों में शामिल है। बड़े पैमाने पर यहां विदेशी निवेशक पैसा लगाते आए हैं, जिसके समय के साथ और भी बढऩे की आशा है। इसलिए सेबी प्रमुख पर लगे आरोप ज्यादा गंभीर हो जाते हैं और कहीं न कहीं इनकी सच्चाई सामने आना भी जरूरी है।
संयुक्त राज्य अमेरिका स्थित शॉर्ट सेलर हिंडनबर्ग रिसर्च ने बुधवार को सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में उभरते मुद्दों पर लंबे समय तक चुप्पी साधने के लिए सेबी की अध्यक्ष माधबी पुरी बुच की आलोचना की। यह बयान भारत की विपक्षी कांग्रेस पार्टी द्वारा हाल ही में लगाए गए आरोपों के जवाब में आया है, जिसमें बुच और उनके पति दोनों पर निजी संस्थाओं से अतिरिक्त धन प्राप्त करने का आरोप लगाया गया है।
हिंडेनबर्ग ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट में कहा, नए आरोप सामने आए हैं कि निजी परामर्श इकाई, जिसका 99 प्रतिशत स्वामित्व सेबी की अध्यक्ष माधबी बुच के पास है, उसने सेबी द्वारा पूर्णकालिक सदस्य के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान सेबी द्वारा विनियमित कई सूचीबद्ध कंपनियों से भुगतान स्वीकार किया। यानि उन्होंने इन कंपनियों से भुगतान लिया, जिनमें शामिल हैं- महिंद्रा एंड महिंद्रा, आईसीआईसीआई बैंक, डॉ रेड्डीज और पिडिलाइट। ये आरोप बुच की भारतीय परामर्श इकाई के बारे में हैं, जबकि बुच की सिंगापुर में भी एक परामर्श इकाई है, पर उसके बारे में अभी तक कोई विवरण नहीं है।
एक प्रेस वार्ता में कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने सेबी की चेयरपर्सन माधबी पुरी बुच के खिलाफ नए आरोप लगाए और उन पर हितों के टकराव के मामले को जानबूझकर छिपाने का आरोप लगाया। खेड़ा ने दावा किया कि बुच के स्वामित्व वाली फर्म अगोरा एडवाइजरी प्राइवेट लिमिटेड ने उनके पद पर रहते हुए परामर्श सेवाएं प्रदान करना जारी रखा, जो उनके पिछले बयानों का खंडन करता है कि कंपनी निष्क्रिय हो गई थी।  कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बुच के पहले के दावों के विपरीत कि उनके पदभार ग्रहण करने के बाद सलाहकार फर्म अगोरा निष्क्रिय हो गई थी, लेकिन उसने सेवाएं प्रदान करना जारी रखा, जिससे 2016 और 2024 के बीच 2.95 करोड़ रुपये का राजस्व मिला। कांग्रेस ने आगे दावा किया कि महिंद्रा एंड महिंद्रा ने 2.59 करोड़ रुपये का योगदान दिया, जो उस अवधि के दौरान अगोरा के कुल राजस्व का लगभग 88 प्रतिशत था। इसके अलावा, कांग्रेस ने कहा कि माधवी पुरी बुच के पति धवल बुच को महिंद्रा एंड महिंद्रा से 4.78 करोड़ रुपये की व्यक्तिगत आय प्राप्त हुई, जिससे विवाद और बढ़ गया। 
इधर, महिंद्रा एंड महिंद्रा ने आरोपों को झूठा और भ्रामक करार देते हुए कहा कि उन्होंने कभी भी सेबी से तरजीही व्यवहार की मांग नहीं की। कंपनी ने बताया कि धवल बुच को 2019 में आपूर्ति श्रृंखला और प्रबंधन में उनकी विशेषज्ञता के लिए नियुक्त किया गया था, जो कि माधबी बुच के सेबी अध्यक्ष बनने से काफी पहले की बात है। कंपनी ने कहा कि आरोपों में संदर्भित सेबी के कोई भी आदेश दावों से संबंधित नहीं थे।
दूसरी ओर, मीडिया को जारी एक संयुक्त बयान में, माधबी पुरी बुच और उनके पति ने हिंडनबर्ग द्वारा लगाए गए आरोपों का जोरदार खंडन किया। बयान में कहा गया है, हम रिपोर्ट में लगाए गए निराधार आरोपों और आक्षेपों का दृढ़ता से खंडन करते हैं। इनमें कोई सच्चाई नहीं है। उल्लेखनीय है कि याद किया जा सकता है कि सेबी प्रमुख के पद पर माधबी पुरी बुच की नियुक्ति की खबर अपने साथ काफी पॉजिटिविटी लेकर आई थी। वह इस पद पर नियुक्त होने वाली पहली महिला तो थीं ही, पहली बार प्राइवेट सेक्टर के किसी फाइनैंस प्रफेशनल को यह पद दिया गया था। जाहिर है, उनसे उम्मीदों का स्तर भी काफी ऊंचा था। ऐसे में उनका कार्यकाल जिस तरह के विवादों में घिरता दिख रहा है, वह वाकई निराशाजनक है।
जहां तक सवाल इस स्थिति को बदलने के लिए उठाए जाने वाले कदमों का है तो उस पर राय बंटी हुई है। एक खेमा विरोधियों और आरोप लगाने वालों का है जिनकी मांग है कि माधबी पुरी बुच को तत्काल सेबी चीफ का पद छोड़ देना चाहिए। दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं जो मानते हैं कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है और इस तरह पद छोड़ देने से विरोधियों के सामने घुटने टेक देने का संदेश जाएगा जो अच्छा नहीं है। लेकिन माधबी पुरी बुच की व्यक्तिगत छवि से ज्यादा बड़ा सवाल शेयर बाजार नियामक सेबी की साख और उसकी विश्वसनीयता का है।
अगर यह मान भी लिया जाए कि माधबी पुरी बुच पर लगाए गए सारे आरोप गलत हैं और जैसा कि उनका दावा है, उन्होंने सेबी प्रमुख के तौर पर अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह पूरी सचाई और ईमानदारी से किया है तो यह बात स्थापित कैसे होगी? निष्पक्ष जांच ही इसका एकमात्र रास्ता है। मगर जांच की निष्पक्षता तब तक सुनिश्चित नहीं की जा सकती जब तक कि माधबी पुरी बुच खुद सेबी प्रमुख के पद पर बैठी हैं।
समझना जरूरी है कि बाजार नियामक जैसी संस्थाओं की निष्पक्षता जितनी ही जरूरी है उसकी निष्पक्ष छवि। इसलिए सेबी चीफ जैसे पद पर बैठे व्यक्ति को लेकर किसी विवाद की गुंजाइश न रहे तो बेहतर होगा। इसके लिए बाजार के डगमगाने या लुढक़ने का इंतजार करना सही नहीं होगा। बाजार विशेषज्ञ भी मानते हैं कि उनके ऊपर गंभीर आरोप लगाए गए हैं और उन्हें पद से अलग हटकर जांच का सामना करने का नैतिक साहस दिखाना चाहिए। कुल मिलाकर किसी भी तरह इस मामले की सच्चाई सार्वजनिक होना बहुत आवश्यक है।
– संजय सक्सेना

Sanjay Saxena

BSc. बायोलॉजी और समाजशास्त्र से एमए, 1985 से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय , मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के दैनिक अखबारों में रिपोर्टर और संपादक के रूप में कार्य कर रहे हैं। आरटीआई, पर्यावरण, आर्थिक सामाजिक, स्वास्थ्य, योग, जैसे विषयों पर लेखन। राजनीतिक समाचार और राजनीतिक विश्लेषण , समीक्षा, चुनाव विश्लेषण, पॉलिटिकल कंसल्टेंसी में विशेषज्ञता। समाज सेवा में रुचि। लोकहित की महत्वपूर्ण जानकारी जुटाना और उस जानकारी को समाचार के रूप प्रस्तुत करना। वर्तमान में डिजिटल और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े। राजनीतिक सूचनाओं में रुचि और संदर्भ रखने के सतत प्रयास।

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